‘उसे अपनी वो बात याद आ गई जो उसने कभी अपनी मां सुखबाई को ताना मारते हुए कही
थी।
"अच्छा !! हमारे पीछे तो कोई
नहीं आता है, तुम्हारे
पीछे फुग्गन क्यों पड़ा था....?' बेटी आरती ने अपनी सच्चरित्रता तो स्थापित करते हुए सुखबाई पर कीचड़ उछाल दिया था ।
अब यही बात क्या अपनी बेटी मुन्नी से कह सकती है ?’ .........(मेरी कहानी ‘सोचा तो होता’ से)http://issuu.com/lamahipatrika/docs/lamahi_april_june_ank
- ‘लमही’ में प्रकाशित मेरी कहानी ‘सोचा तो होता’ को इस लिंक पर पत्रिका के पृष्ठ 40 पर सुगमता से पढ़ा जा सकता है.
धन्यबाद शरद जी.
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