शनिवार, जनवरी 11, 2025

कहानी | प्रेम वाया एल. डी. आर. | डॅा.(सुश्री) शरद सिंह | पहला अंतरा में प्रकाशित

"पहला अन्तरा" अक्टूबर-दिसंबर 2024 में प्रकाशित :

कहानी
   प्रेम वाया एल. डी. आर.  
       - डॅा. (सुश्री) शरद सिंह

  ‘‘सुरू! देख यदि तुझे कोई पसंद है तो पहले बता दे। तेरे लिए कई जगह से रिश्ते आ रहे हैं। यदि तुझे ऑब्जेक्शन न हो तो हम तेरे लिए लड़का पसंद करें।’’ मां ने सुरू यानी सुरेखा से दो-टूक शब्दों में पूछा। यह अच्छी बात थी कि मां ने एक न्यू जेनरेशन माॅम की तरह सुरेखा से खुल कर उसकी इच्छा पूछी। जबकि खुद सुरेखा की मां को यह अवसर नहीं दिया गया था। वह तो ऊपर वाले की कृपा से सुरेखा की मां को खुले विचारों वाला, सुलझा हुआ पति मिला। इसीलिए यह संभव हो सका कि सुरेखा की मां ने सुरेखा के पिता के सामने यह प्रश्न सुरेखा से पूछ लिया।
‘‘हां बेटी बोलो! अगर तुम्हारी कोई च्वाइस हो तो हम उसका रिस्पेक्ट करेंगे। बस, थोड़ी जांच-पड़ताल जरूर करेंगे। पेरेंट्स होने के नाते। लेकिन अपनी मर्जी तुम पर थोपेंगे नहीं। आई स्वेयर!’’ सुरेखा के पिता ने अपनी पत्नी के प्रश्न का समर्थन करते हुए कहा।
‘‘थैंक्यू ममा! थैंक यू पाॅप! मैं आप लोगों को बताने ही वाली थी कि मुझे एक लड़के पर क्रश है।’’ कह कर सुरेखा चुप हो गई।
‘‘सिर्फ़ क्रश? लव नहीं?’’ मां ने मुस्कुरा कर पूछा।
‘‘आई थिंक आई हैव फालेन लव विथ हिम!’’ सुरेखा ने कुछ सोचते हुए कहा।
‘‘यू थिंक? नाॅट श्योर?’’ अब पिता ने चिंतित होते हुए पूछा।
‘‘याह! बिकाज़ वी आर लिविंग इन एल.डी. आर.।’’ सुरेखा ने सधे हुए स्वर में उत्तर दिया।
‘‘व्हाट मीन एल.डी. आर.?’’ मां और पिता दोनों एक साथ पूछ बैठे।
‘‘लिव इन?’’ फिर मां ने सशंकित स्वर में पूछा।
‘‘लिव इन! माॅम आप ये क्या कह रही हैं? मैं पूरे समय अपने कमरे में अकेली बंद रहती हूं। क्या आपने किसी बंदे को मेरे रूम में आते देखा है कभी?’’ सुरेखा खिलखिला कर हंस पड़ी।
मां झेंप गई। बेटी सही कह रही थी। वह अकेली अपने कमरे बैठी रहती है अपनी कंपनी की ड्यूटी बजाती हुई। क्या पूछ बैठी वह भी! मां ने मन ही मन अपने माथे को ठोंका।
‘‘ओके! लड़का कहां का है? अपने ही शहर का है?’’ पिता ने एल.डी. आर. का फुल फार्म पूछने का रिस्क नहीं लिया। क्या पता उसे भी बेटी के सामने अपने अज्ञान पर लज्जित होना पड़े।
‘‘भावनगर का है।’’ सुरेखा ने बताया।
‘‘यानी गुजरात?’’ पिता ने कहा।
‘‘जी, अभी तक तो भावनगर गुजरात में ही है।’’ सुरेखा ने चुटकी ली। वह नए जेनरेशन की बेटी थी, मांता-पिता से झिझकने का तो सवाल ही नहीं था। मौका पाते ही अटैक!
‘‘तुम्हारे साथ पढ़ता था? या तुम्हारी कंपनी में है?’’ पिता ने सावधानीपूर्वक पूछा।
‘‘दोनों गलत! बट नाऊ आई एम बिज़ी! बाकी बातें बाद में करूंगी।’’ सुरेखा ने माता-पिता से कहा और बैठक से उठ कर अपने कमरे की ओर बढ़ ली। फिर सहसा पलट कर बोली,‘‘मेरे लिए फिलहाल लड़का मत ढूंढिए। यदि मुझे कोई सही बंदा नहीं मिला तो एट लास्ट मैं आप लोगों को बता दूंगी।’’
सुरेखा मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली गई। उसके पीछे उसके कमरे का दरवाज़ा डोर-क्लोज़र के द्वारा अपने-आप बंद हो गया। बंद दरवाज़े पर बड़ा-सा पोस्टर लगा था -‘‘डोंट ट्राई इंटर माई रूम! इट वुड बी ए क्राईम!’’ (मेरे कमरे में प्रवेश करने का प्रयास मत करना! यह अपराध होगा!) साथ में एक घूंसे की तस्वीर थी।
घर में तीन प्राणी रह रहे थे। सुरेखा, उसकी मां और पिता। सुरेखा का बड़ा भाई चार साल पहले बैंकाक चला गया था। आज भी वहीं है। लौट कर आने का उसका इरादा भी नहीं है। घर में काम करने वाली नौकरानी इतनी अंग्रेजी समझती नहीं है, हां, वह घूंसा जरूर समझ जाती होगी। तो यह लिखित चेतावनी स्पष्ट है कि माता-पिता के लिए ही है कि वे अपनी सीमाओं का ध्यान रखें और उसका उल्लंघन करने के बारे में सोचे भी नहीं।    
वैसे इस कहानी का शीर्षक पढ़ कर इस भ्रम में मत पड़ जाइएगा कि यह कोई पारंपरिक प्रेम का किस्सा है। वैसे प्रेम पारंपरिक हो सकता है किन्तु प्रेम का तरीका पारंपरिक हो, यह आवश्यक तो नहीं।
जब प्रेम की हवाएं चलती हैं तो उसमें कभी रातरानी की सुंगध भर जाती है तो कभी महुए की मदकता। कभी आम्रमंजरी झूमने लगती है तो कभी माॅर्निंग ग्लोरी की घंटेनुमा फूलों वाली बेलें डोलने लगती हैं। यह बात और है कि प्रेम आजकल बागीचों ने नहीं बल्कि मोबाईल या टेबलेट या फिर लैपटाॅप के स्क्रीन से गुरू होता है। वह भी किसी एप्प के जरिए। चाहे वह चेहरे वाली किताब का एप्प हो या क्या हुआ एप्प या फिर ग्राम-छटाक वाला एप्प। उस पर अगर कहीं रील वाला एप्प हुआ तो प्रेम नाचता-गाता, थिरकता या फिर प्रैंक करता हुआ आता है। है न, विचित्र बात? नहीं! ये सारी बातें भी अब पुरानी हो चली हैं। अब प्रेमी जोड़े का एक प्राणी बैंगलुरु में होता है तो दूसरा गुरुग्राम में। एक चेन्नई में तो दूसरा लद्दाख में। एक दिल्ली में तो दूसरा वाशिंगटन में। लो कर लो प्यार!
मगर प्यार तो प्यार है जैसे सुरेखा और कार्तिक को हो गया। बुंदेलखंड के ठाकुर साहब की बेटी और भावनगर के पटेल साहब के छोकरे कार्तिक के बीच प्यार। अब आप सोचेंगे कि दोनों एक साथ पढ़ते रहे होंगे। सहपाठियों में प्रेम होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था। उस छोटे से वायुयान में उड़ने सेे पहले वे दोनों एक दूसरे से मिले ही नहीं थे। भले ही वह उड़ान उनकी साथ-साथ पहली उड़ान थी, भले ही उससे पहले उन्होंने एक-दूसरे को साक्षात नहीं देखा था, परस्पर स्पर्श की बात तो बहुत दूर की है। लेकिन दोनों उस उड़ान से पहले ही एक-दूसरे के प्रेम में तन-मन से सिर से ऊपर तक डूब चुके थे, फिर भी अपने प्रेम को ले कर आश्वस्त नहीं थे।
अपने एक साझा मित्र के सौजन्य से दोनों ने एक पापुलर एप्प पर एक-दूसरे की तस्वीर देखी और बस फ़िदा हो गए एक-दूसरे पर। प्रथम दृष्टि में प्रेम ज़रिए सोशल मीडिया एप्प। जिस दिन से दोनों को यह अनुभव हुआ कि वे दोनों एक-दूसरे के लिए बने हैं बस, उसी दिन से दोनों का समय सोशल मीडिया के थ्रू एक-दूसरे के हवाले हो गया। यह भी एक तरह का फ़ोमो ही था। फ़ोमो यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट। यानी कहीं कुछ छूट न जाए। दोनों एक दूसरे की हर पोस्ट को लाईक करते। उस पर कमेंट करते। बड़ी मेहनत से ढूंढ-खोज कर सटीक इमोजीज़ लगाते। ऐसा करते हुए दोनों का दिल तेजी से धड़कता। आंखों की पुतलियां फैल जातीं। होंठों पर मुस्कुराहट गहराने लगती। दोनों की पीठ अपने कमरे के बंद दावाज़े की ओर होती। यूं भी बिना थापा दिए किसी को कमरे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। फिर भी यदि कहीं कोई भूले से अचानक प्रवेश कर जाए तो उनके चेहरे की भाव-भंगिमा न देख सके। फिर एक अदृश्य उंगली विंडो टैब पर हमेशा रहती। ताकि आपातकाल में एक्टिव विंडो को गिरा कर किसी इनेक्टिव विंडो को जगा दिए जाए। जैसे कार्यालयों में ड्यूटी टाईम में अपने कम्प्यूटर पर ताश के पत्तों का गेम खेलने वाले अकसर करते हैं। बाॅस अगर सिर पर आ कर खड़ा हो जाए तो वह यही पाएगा कि बेचारा बंदा कितने मनोयोग से डाटा अपडेट कर रहा है।
सुरेखा और कार्तिक के कमरों में भी यदि किसी का आपात प्रवेश होता तो वह यही पाता कि वे अपने लैपटाॅप पर कितनी तन्मयता से अपनी-अपनी ऑनलाईन ड्यूटी कर रहे हैं। वर्क फ्राम होम के ढेर सारे लाभों में से एक बहुत बड़ा लाभ यह भी है। अपना कमरा, अपना लैपटाप, अपनी दुनिया। चाहें आप ऑन लाईन गेमिंग करें या ऑन लाईन लविंग, सब कुछ पूरी पर्देदारी के साथ, निश्चिंत हो कर। दरअसल इश्क़ परवान चढ़ने के तरीके ढूंढ ही लेता है, उसके लिए किसी को अतिरिक्त श्रम करने की या माथा खपाने की आवश्यकता नहीं होती है।
सुरेखा से कहीं अधिक ‘‘मोस्ट एलिजिबल बैचलर’’ कार्तिक था। धनाढ्य व्यवसायी परिवार का दैदिप्यमान नक्षत्र। सारे बड़े ग्रहों से ले कर क्षुद्र ग्रह तक अपनी-अपनी सुपुत्री के लिए उसके लिए परिक्रमा करना शुरू कर चुके थे। मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम करने वाला। एक बड़े पैकेज का कमाऊ पूत। हर माता-पिता को उसके साथ अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित और सुखद दिखाई दे रहा था। कार्तिक के परेशान माता-पिता पचहत्तर प्रतिशत प्रगतिशील थे। उन्होंने चंद लड़कियां की तस्वीरें बटोर लीं और फिर वही प्रश्न कार्तिक से किया जो उधर सुरेखा से किया गया था।
‘‘हूं कहूं छूं, कार्तिक तेरे को कोई छोकरी पसंद है क्या? टेल मी!’’ कार्तिक की मां ने उसकी प्लेट में सैंडविंच रखते हुए पूछा। उनकी भाषा भी गुजराती हिंदी और अंग्रेजी की सेंडविच थी।
नाश्ते का समय अर्थात् पटेल परिवार में पारिवारिक बातें करने का सही समय। क्योंकि उसके बाद कार्तिक अपने कमरे में बंद हो जाता है। उसकी छोटी बहन चारुल इंस्टीट्यूट चली जाती। कार्तिक के पिता अपनी कंपनी के आफिस चले जाते थे और मां अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाती थी जिसमें शाॅपिंग से ले कर किटी पार्टी तक शामिल थी। रात को थके-मांदे मन से कोई बातें करने के मूड में नहीं रहता था। उनका दोपहर का भोजन कभी साथ नहीं होता था। सभी अपनी-अपनी सुविधानुसार दोपहर का भोजन करते थे। कार्तिक तो प्रायः अपनी थाली अपने कमरे में ही ले जाता था। उसके कमरे के बंद दरवाज़े के बाहर उसी तरह की लगभग चेतावनी वाला पोस्टर लगा था, जैसा कि सुरेखा के कमरे के दरवाज़े के बाहर। सैंकड़ों मील की दूरी, पर पोस्टर एक-सा, विचार एक से, जिसका सार था-‘‘हमारे जीवन में ताक-झांक मत करो! यह अपराध है।’’
वस्तुतः आयु के हर पड़ाव पर अपराध के अर्थ बदलते रहते हैं। बचपन में चाॅकलेट चुराने वाले के लिए चेतावनी होती है, अर्द्ध युवावस्था में कौतूहल पर रोक लगाने वालों के लिए चेतावनी होती है और पूर्ण युवावस्था निजता के मौलिक अधिकार की ताल ठोंक कर घोषणा कर देती है। समझदार माता-पिता अपने बेटे या बेटी के इस अधिकार का सम्मान कर के घर में शांति बनाए रखते हैं। वहीं, चंद अविवेकी माता-पिता इस अधिकार को नकार कर घर में गंभीर कलह को दावत दे देते हैं। कार्तिक के माता-पिता प्रथम श्रेणी के थे। उन्होंने तब तक कार्तिक की निजता को निजी रहने दिया जब तक कि उन पर लड़की वालों का दबाव नहीं पड़ने लगा।
‘‘हां बेटा, शुं तमने कोई छोकरी गमे छे?’’ पिता ने भी मां का ही प्रश्न दोहराया कि क्या तुम्हें कोई लड़की पसंद है?
‘‘हां कदाच! आई थिंक सो!’’ कार्तिक ने उत्तर दिया।
‘‘थिंक ऑर श्योर?’’ वही प्रश्न किया कार्तिक के पिता ने। सुरेखा के पिता वाला प्रश्न। मसला वही, पिता का उत्तरदायित्व वही, सो प्रश्न भी वही रहना ही था। फिर यह प्रश्न दुनिया की चाहे जिस भाषा, जिस समुदाय या जिस देश में किया जाता।
‘‘आई एम श्योर, बट नाॅट श्योर टू।’’ कार्तिक ने उलझन भरे स्वर में कहा।
‘‘क्या मतलब? तुम श्योर भी हो और नहीं भी? ये क्या बात हुई?’’ पिता का सिर चकरा गया।
‘‘आई लाईक हर! आई लव हर! बट अभी हम एल.डी. आर. में हैं। हम एक बार मिल लें फिर मैं बता सकूंगा कि मैं श्योर हूं कि नहीं।’’ कार्तिक ने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया।
मगर अफ़सोस कि बात अभी भी माता-पिता के लिए स्पष्ट नहीं हुई थी।
‘‘आ एल.डी. आर. शुं छे?’’ मां ने पूछ ही लिया।
मां की बात सुन कर कार्तिक की छोटी बहन चारुल मुंह दबा कर हंसने लगी।
‘‘छोड़ो भी मां! बाद में बात करेंगे। वैसे अभी आप लोग लड़की देखने के चक्कर में मत पड़ो।’’ कहते हुए कार्तिक ने एक हाथ से अपना बचा हुआ सेंडविच उठाया और दूसरे हाथ से काॅफी का मग उठा कर अपने कमरे में जा समाया। माता-पिता और पुत्र की दुनियाएं फिर अलग-अलग हो गईं। निजता के अधिकार का पोस्टर दरवाजे पर दबंगई से मुंह चिढ़ा रहा था।
‘‘तू क्यों हंस रही है? ये एल.डी. आर. क्या है? तुझे पता है तो तू ही बता दे, वरना चुपचाप अपना नाश्ता खतम कर।’’ कार्तिक की मां ने बेटी चारुल को डांट लगाई।
‘‘अरे, मां यू आर वेल एजुकेटेड पर इतना नहीं समझतीं? एल.डी. आर. मतलब लांड डिस्टेंस रिलेशन। और भाई का सीक्रेट बताऊं? उनकी लांग डिस्टेंस रिलेशन गर्ल मध्यप्रदेश की है।’’ चारुल ने शान से बताया।
‘‘उसकी क्लासमेट थी?’’ मां ने पूछा।
‘‘नहीं!’’चारुल ने इनकार में सिर हिलाया।
‘‘कंपनी फैलो होगी!’’ पिता ने विश्वासपूर्वक कहा।
‘‘नहीं!’’ चारुल फिर मुस्कुराई।
‘‘यहां कोई केबीसी का क्विज नहीं चल रहा है। सो, जो जानती है वह पूरी बात बता।’’ मां ने फिर चारुल को झिड़का।
‘‘मां, मैं ज्यादा नहीं जानती। बस, इतना जानती हूं कि वे दोनों सोशल मीडिया पर मिले और उनमें अफेयर हो गया।’’ कहती हुई चारुल भी उठ खड़ी हुई। उसका नाश्ता समाप्त हो गया था।
बेटी के जाने के बाद पीछे छूट गए चिंतित मां-बाप।
कुछ देर दोनों ने आपस में सलाह-मशविरा किया फिर कार्तिक के कमरे का दरवाजा थपथपाया।
‘‘क्या है?’’ कार्तिक ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।
‘‘बेटा हम लोग सोचते हैं कि तू एक बार उस लड़की से मिल ले। ताकि तू श्योर हो सके।’’ पिता ने कार्तिक से कहा।
‘‘हां, मैं भी यही सोच रहा था। मैं सुरेखा से प्लान कर के आप लोगों को बताता हूं।’’ कहते हुए कार्तिक ने फिर दरवाजा बंद कर लिया।
‘‘सुरेखा’’- कार्तिक के माता-पिता को पहली बार लड़की का नाम पता चला।

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के समय कार्तिक ने बताया कि उसने और सुरेखा ने तय किया है कि वे लोग वीकेंड पर दो दिन के लिए पटाया जाएंगे।
‘‘पटाया यानी थाईलैंड?’’ माता-पिता दोनों चौंके।
‘‘क्या वो पटाया में रहती है?’’ मां ने पूछा।
‘‘नहीं, उसका भाई वहां बैंकाक में रहता है। लेकिन हम लोग उसके पास नहीं जाएंगे। हमने अपनी पटाया की ट्रिप ऑनलाइन बुक कर ली है। होटल में रुकेंगे।’’ कार्तिक ने बेझिझक बताया।
पर माता-पिता ने बेटे की बातें झिझक के साथ सुनी।
‘‘उसके पेरेंट्स मान गए? एक अनजान लड़के के साथ दूसरे देश जाने देने के लिए?’’ मां ने आश्चर्य भरे स्वर में का।
‘‘सो व्हाट मां? आमा नुकसान शूं छे? हम एक-दूसरे को खा थोड़े ही जाएंगे? मिलेंगे, एक-दूसरे को जानेंगे। ठीक लगा तो रिलेशन आगे बढ़ाएंगे, नहीं तो अपने-अपने रास्ते! और रही अनजान होने की बात, तो हम लोग डेढ़ साल से एल.डी. आर. में हैं। और मां जब मैं जर्मनी गया था ट्रेनिंग में तो यहां से मेरे साथ दो-तीन लड़के-लड़कियां गई थे। उस समय तो आपने ऑब्जेक्शन नहीं किया था। तो हवे शा माटे? अब क्यों?’’ कार्तिक ने धैर्यपूर्वक उत्तर देते हुए पूछा।
‘‘ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो।’’ पिता ने हथियार डालते हुए कहा। वैसे भी उनका तो बेटा था। उन्हें कोई आंच आने वाली नहीं थी। एक ठेठ भारतीय पिता की भांति उन्होंने सोचा। अब यदि लड़की के मां-बाप परवाह नहीं कर रहे हैं तो वे क्यों चिंता करें? पिता ने स्वयं को समझाया।

ठीक यही प्रश्नोत्तरी उधर सुरेखा के साथ हुई जब उसने बताया कि वह अपने एल.डी. आर. के साथ दो दिन के लिए पटाया जा रही है। टिकट्स और होटल टूर एजेंसी के द्वारा बुक कराए लिए हैं।
स्पष्ट था कि सुरेखा के माता-पिता स्तब्ध रह गए। उस समय तक तो उन्हें एल.डी. आर. का भी अर्थ पता नहीं चल सका था।
‘‘पहले हमें बताओं के ये सब क्या चल रहा है?’’ सुरेखा की मां भड़क कर बोलीं। उनके धैर्य का बांध अब टूट गया था।
‘‘कुछ नहीं मां, हम लोग अभी लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप में हैं लेकिन अब कार्तिक चाहता है कि हम एक बार मिल कर एक-दूसरे को अच्छे से जान लें कि हमारा भविष्य एक-दूसरे के साथ सही रहेगा कि नहीं।’’ सुरेखा ने सहज भाव से बताया।
‘‘तो उसे यहां क्यों नहीं बुला लेती हो? पटाया जाने की क्या जरूरत है?’’ मां ने कहा।
‘‘ओह माॅम! व्हाट काइंड आर यूं? हम लोग पर्सनल स्पेस में एक-दूसरे को अच्छे से समझ सकेंगे। आप समझती क्यों नहीं?’’ सुरेखा ने मां पर झुंझलाते हुए कहा।
‘‘देखो सुरू! वो अनजान लड़का है, फिर वह दूसरा देश है, अनजान जगह....’’ मां ने समझाना चाहा लेकिन मां की बात अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि सुरेखा ने उनकी बात काट दी।
‘‘कैसी बातें कर रही हो मां? अभी अगर मेरी पटाया में मेरी जाॅब लगी होती तो तुम ये अनजान-अनजान की रट नहीं लगातीं। कोरोना पेंडेमिक के पहले कंपनी की ओर से मैं दुबई भी तो गई थी। कंपनी के चार लड़के भी साथ गए थे। तुम्हें यह पता था तब भी तुमने यह नहीं कहा था कि अनजान लड़कों के साथ... अब ऐसा क्यों सोच रही हो?’’ सुरेखा की बात तार्किक थी, लेकिन उसमें कड़वाहट थी। सच कड़वा जो होता है।
‘‘वो तू कंपनी की तरफ से गई थी।’’ पिता ने हस्तक्षेप किया।
‘‘ये भी मान लीजिए कि कंपनी की तरफ से जा रही हूं। वैसे भी सारी बुकिंग कार्तिक ने ही कराई है।’’ सुरेखा ने सब कुछ साफ-साफ बता दिया।
‘‘फिर भी सुरू!’’ मां ने टोकना चाहा।
‘‘नो, ममा! आप लोग ग्रांड पेरेंट्स जैसी बात मत करिए। आप लोग अच्छे पेरेंट्स हैं। ट्रस्ट ऑन मी एंड ऑन योर सेल्फ टू।’’ सुरेखा ने कहा।
माता-पिता समझ गए कि बेटी के पास ठोस तर्क हैं, वे उसे डिगा नहीं सकते हैं।
‘‘ठीक है, अपना ध्यान रखना। और कोई जरूरत पड़े तो अपने भाई को काॅल कर लेना।’’ पिता ने सुरेखा की बात मानते हुए यह तसल्ली की कि उनका बेटा यानी सुरेखा का भाई बैंकाक में ही है। जरूरत पड़ने पर फौरन पटाया पहुंच सकता है।
इस तरह एल.डी. आर. वाले सुरेखा और कार्तिक दिल्ली पहुंचे। जहां उन्होंने दिल्ली से बैंकाक वाली फ्लाईट पकड़ी। संयोग यह कि जहाज पर सवार होने के बाद दोनों ने एक-दूसरे को आफ स्क्रीन यानी साक्षात पहली बार देखा। स्पाइस जेट के छोटे से जहाज में हजारों मील की ऊंचाई पर उठते हुए दोनों ने एक-दूसरे के प्रेम की गहराई को नापना शुरू किया। बैंकाक पहुंचते-पहुंचते दोनों ने एक-दूसरे को काफी जान लिया था। बैंकाक से पटाया और पटाया में प्रेम का परीक्षण।
दो दिन कैसे गुज़र गए पता ही नहीं चला।
वापस दिल्ली वाया बैंकाक। फिर एक ने गुजरात का रास्ता पकड़ा तो दूसरे ने मध्यप्रदेश का।
यात्रा की दो लोगों ने लेकिन सांसे थमी रही कई लोगों की।
दोनों अपने-अपने घर सुरक्षित पहुंचे। घर के लोगों ने चैन की सांस ली।
‘‘क्या तय हुआ?’’ दोनों से एक ही प्रश्न पूछा गया।
उत्तर दोनों का एक ही था-‘‘अगली मुलाक़ात तक एल.डी. आर. ही जारी रखेंगे।’’
दोनों के परिवार वाले तय नहीं कर पा रहे थे कि वे उनके इस निर्णय पर प्रसन्न हों या शोक मनाएं। लेकिन कार्तिक और सुरेखा के मन में कोई उलझन नहीं थी। वे खुश थे। शांत थे। अपने-अपने कमरों में बंद थे अपने एल.डी. आर. के साथ।                        
      -------------------

#डॉसुश्रीशरदसिंह #कहानी #प्रेमकहानी  #DrMissSharadSingh #story #lovestory #storywriter #novelist

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें