बुधवार, अक्तूबर 23, 2019

संस्मरण - 2 .. नानाजी, मां और भय की लाठी - डॉ शरद सिंह

संस्मरण - 2 .. नानाजी, मां और भय की लाठी - डॉ शरद सिंह Memoir of Dr Sharad Singh 2
 संस्मरण - 2 .. नानाजी, मां और भय की लाठी - डॉ शरद सिंह
 
मेरे नाना संत श्यामचरण सिंह हेडमास्टर रहे थे। यद्यपि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय होने के लिए मेरे जन्म से बहुत पहले ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। उन्हें मोतियाबिंद था इसलिए वे ठीक से देख नहीं पाते थे किन्तु बिना देखे ही वे मुझे और मेरी दीदी वर्षा सिंह को गणित, अंग्रेजी आदि विषय पढ़ाया करते थे। स्वभाव से वे गुस्सैल थे। यदि मैं सवाल ठीक से हल नहीं कर पाती तो उन्हें बहुत गुस्सा आता। वैसे वे हम बहनों को कभी मारते थे नहीं थे। उनका मानना था कि लड़कियों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। फिर भी हमें, विशेष रूप से मुझे हमेशा यह भय बना रहता था कि मुझे ठीक से पढ़ाई करने पर नानाजी बहुत मारेंगे। मुझे उनकी मार कभी नहीं पड़ी लेकिन उनके भय की लाठी हमेशा मेरी आंखों के सामने खड़ी रही।
हम दोनों बहनें नानाजी की लाड़ली थीं। वे हमसे प्रेम भी बहुत करते थे। पढ़ाई के मामले को छोड़ दिया जाए तो उनसे हमें कभी डर नहीं लगता था।
....वैसे मुझे एक घटना याद है कि मैं अपनी मां डॉ विद्यावती जी के साथ बल्देव मंदिर गई।
बल्देवजी का प्रसिद्ध मंदिर मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय में है। पन्ना मेरी जन्मस्थली है। हां तो, उस समय मैं शायद दूसरी कक्षा में पढ़ती थी। मंदिर से लौटते समय मैंने मां से कुछ खरीदने की ज़िद की (सामान का स्मरण मुझे नहीं है, कोई मिठाई या खिलौना रहा होगा)। उन्होंने मना कर दिया। मैंने गुस्से में आ कर उनकी चोटी खींच दी। मां ने मेरी इस हरकत पर गुस्सा हो कर मुझे धमकाया कि वे घर पहुंच कर नानाजी से शिक़ायत करेंगी।
घर पहुंचते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैं जा कर पलंग के नीचे छिप गई। मुझे लगा कि अब मां नानाजी से शिक़ायत करेंगी और मुझे मार पड़ कर रहेगी। लगभग आधा घंटा मैं वहां छिपी रही। फिर मां ने ही मुझे पुकारा-‘‘पलंग के नीचे से निकल आ, तुझे कोई कुछ नहीं कहेगा!’’
यानी मां ने मुझे पलंग के नीचे छिपते हुए देख लिया था और यही मेरी सज़ा साबित हुई कि मैं आधा घंटा पलंग के नीचे छिपी रही।
उस दिन के बाद से मैंने कभी भी मां से कोई सामान खरीदने की ज़िद नहीं की। सिर्फ़ दबे शब्दों में इच्छा ज़ाहिर करती और यदि मांग पूरी करने लायक होती तो मां अवश्य पूरी करतीं। यूं भी उन्होंने हम दोनों बहनों को कभी कोई अभाव महसूस नहीं होने दिया। एकल मातृत्व की मिसाल बन कर हम दोनों बहनों को पाला, पढ़ाया-लिखाया।

#Memoir_of_Dr_Sharad_Singh
— with Sant Shyam Charan Singh, Varsha Singh and Dr Vidyawati Malvika.

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