Dr (Miss) Sharad Singh, Author, Historian and Social Worker |
शोध-आलेख
रामकथा की वैश्विक सत्ता में निहित उसकी मूल्यवत्ता
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
(लेखिका सागर, म.प्र. निवासी ‘प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास’ तथा ‘खजुराहो की मूर्तिकला में सौंदर्यात्मक तत्व’ आदि विभिन्न विषयों पर पचास पुस्तकों की लेखिका, इतिहासविद्,साहित्यकार।)
(लेखिका सागर, म.प्र. निवासी ‘प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास’ तथा ‘खजुराहो की मूर्तिकला में सौंदर्यात्मक तत्व’ आदि विभिन्न विषयों पर पचास पुस्तकों की लेखिका, इतिहासविद्,साहित्यकार।)
विशेष : यह लेख उस वक्तव्य का आलेख रूप है जो ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और रामकथा’’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा अपने अतिथि-व्याख्यान में अप्रैल 2018 में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गढ़ाकोटा (मध्यप्रदेश) में बोला गया था। सेमिनार के उपरांत महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम भारती द्वारा संपादित सेमिनार पर केन्द्रित पुस्तक ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और रामकथा’’ में इसे संग्रहीत किया गया।
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar (MP) - 23.04.2018 |
रामकथा को वैश्विक स्तर पर जो प्रतिष्ठा और लोकप्रियता मिली है वह इसकी मूल्यवत्ता को स्वतः सिद्ध करती है। विश्व-इतिहास और विश्व-साहित्य में राम के समान अन्य कोई पात्र कभी नहीं रहा। रामकथा की अपनी एक वैश्विक सत्ता है, अपनी एक अलग पहचान है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि रामकथा मात्र एक कथा नहीं वरन् जीवन जीने की सार्वभौमिक शैली है। इसमें मानवीय पारिवारिक संबंधों से ले कर जड़ एवं चेतन के पारस्परिक संबंधों की भी समुचित व्याख्या की गई है। रामकथा की यह भी विशेषता है कि इस पृथ्वी का कोई ऐसा तत्व नहीं है जो प्राणिरूप में इसमें समावेशित नहीं किया गया हो। प्राणहीन पाषाण अहिल्या के रूप में जीवन्त हो उठता है तो मृतकों की देह को खाने वाला गिद्ध पक्षी जटायु के रूप में श्रीराम और सीता की सहायता में दौड़ पड़ता है। समुद्र संवाद करता है तो जगत में उद्दण्ड प्राणि के रूप में पहचाने जाने वाले वानर रूपी बालि और सुग्रीव के रूप में न केवल शासनकर्त्ता के रूप में मिलते हैं वरन् समुद्र पर सेतु बांधने का अनुशासित कार्य भी करते दिखते हैं। स्त्री और पुरुष के इतने विविध रूप इस कथा में हैं जो किसी अन्य कथा में देखने को नहीं मिलते हैं। यह एक ऐसी कथा है जिसमें श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श राजा, आज्ञाकारी पुत्र और आदर्श पति होने के साथ ही महान योद्धा भी हैं। वे धैर्यवान हैं तो भावुक भी हैं। राम एक ऐसे चरित्र हैं जिनकी दृष्टि में कोई छोटा या बड़ा नहीं है, कोई अस्पृश्य नहीं है और न ही कोई उपेक्षित है। रामकथा में श्रीराम के द्वारा अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की विजय की जिस प्रकार स्थापना की गई है उससे समूचा विश्व प्रभावित होता आया है।
Dr Sharad Singh In International Conference 23.04.2018 |
वाल्मीकि रचित रामायण अतिरिक्त भारत में जो अन्य रामायण लोकप्रिय हैं, उनमें ‘अध्यात्म रामायण’, ‘आनन्द रामायण’, ‘अद्भुत रामायण’, तथा तुलसीकृत ‘रामचरित मानस’ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। वाल्मीकिकृत रामायण के उपरान्त रामकथा में दूसरा प्राचीन ग्रन्थ है ‘अध्यात्म रामायण’। वाल्मीकि में जहां हमें मानवीय तत्व अधिक दिखाई देता है, वहीं ‘अध्यात्म रामायण’ में राम का ईश्वरीय तत्व सामने आता है। इसीलिए ‘आध्यात्म रामायण’ को विद्वानों द्वारा ‘ब्रह्मांड-पुराण’ के उत्तर-खंड के रूप में भी स्वीकारा किया गया है। वहीं, ‘आनन्द रामायण’ में भक्ति की प्रधानता है। इसमें राम की विभिन्न लीलाओं तथा उपासना सम्बन्धी अनुष्ठानों की विशेष चर्चा है। ‘अद्भुत रामायण’ में रामकथा के कुछ नए कथा-प्रसंग मिलते हैं। इसमें सीता माता की महत्ता विशेष रूप में प्रस्तुत की गयी है। उन्हें ‘आदिशक्ति और आदिमाया’ बतलाया गया है, जिसकी स्तुति स्वयं राम भी सहस्रनाम स्तोत्र द्वारा करते हैं। लोकभाषा में होने के कारण तुलसीकृत ‘रामचरित मानस’ की लोकप्रियता आधुनिक समाज में सर्वाधिक है। इसने रामकथा को जनसाधारण में अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया। इसमें भक्ति-भाव की प्रधानता है तथा राम का ईश्वरीय रूप अपनी समग्रता के साथ सामने आया है। वस्तुतः ‘रामचरित मानस’ उत्तर भारत में रामलीलाओं के मंचन का आधार बनी।
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar - 23.04.2018 |
रामकथा ने भारतीय मात्र भू-भाग पर ही राज नहीं किया अपितु भारत की सीमाओं को लांघती हुई उसने विदेशों में भी अपनी सत्ता स्थापित की। राजनीतिक सत्ता को परिवर्तन यानी तख़्तापलट का भय होता है किन्तु ज्ञान की सत्ता को चिरस्थायी होती है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं होता। इसीलिए जिन देशों में धार्मिक एवं राजनीतिक परिवर्तन हुए तथा भीषण रक्तपात हुए वहां भी रामकथा ने अपना प्रभाव सतत बनाए रखा। प्राचीन भारत और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आर्य संस्कृति तथा उसके साथ रामकथा का जो प्रचार-प्रसार हुआ, वह आज भी यथावत स्थित है। युग, परिस्थिति और धर्म परिवर्तन के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में रामकथा के प्रभाव में कोई कमी नहीं आयी है। इसके विपरीत उसमें वृद्धि ही हुई है। मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में तो रामायण को राष्ट्रीय पवित्र पुस्तक का गौरव प्राप्त है। भारत के न्यायालयों में जो स्थान ‘भगवद्गीता’ को प्राप्त है, इंडोनेशिया में वहीं स्थान ‘रामायण’ को मिला हुआ है। वहां ‘रामायण’ पर हाथ रखकर सत्यता की शपथ ली जाती है। इंडोनेशिया में प्रचलित रामकथा के ग्रन्थ का नाम है ‘काकाविन रामायण’। इसमें 26 सर्ग तथा 2778 पद हैं। ‘काकाविन रामायण’ के आधार पर इंडोनेशिया में राम की अनेक प्राचीन प्रतिमाएं मिलती हैं।
Dr Sharad Singh In International Conference 23.04.2018 |
एशिया के अनेक देशों में रामकथा प्रचलित है जिसमें वहां की जीवन, धर्म, संस्कृति की दलग ही छाप है। जिसके कारण रामकथा को एक वैश्वि स्वरूप मिला है। जिन देशों में लगभग सौ वर्ष से भी पहले पहले राम-कथा पहुंची, उसमें चीन, तिब्बत, जापान, इण्डोनेशिया, थाईलैंड, लाओस, मलेशिया, कम्बोडिया, श्रीलंका, फिलीपिन्स, म्यानमार, रूस आदि देश प्रमुख हैं।
जापान में 12वीं शताब्दी में रचित ‘होबुत्सुशु’ नामक ग्रन्थ में रामायण की कथा जापानी में मिलती है। लेकिन ऐसे प्रकरण भी हैं, जिनसे कहा जा सकता है कि जापानी इससे पूर्व भी राम-कथा से परिचित थे। वैसे आधुनिक अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ कि विगत एक हजार वर्ष से प्रचलित ‘दोरागाकु’ नाट्य-नृत्य शैली में राम-कथा मिलती है। 10 वीं शताब्दी में रचे ग्रन्थ ‘साम्बो-ए-कोताबा’ में दशरथ और श्रवणकुमार का प्रसंग मिलता है। ‘होबुत्सुशु’ की राम-कथा और ‘रामायण’ की कथा में भिन्न है। जापानी कथा में शाक्य मुनि के वनगमन का कारण निरर्थक रक्तपात को रोकना है। वहां लक्ष्मण साथ नहीं है, केवल सीता ही उनके साथ जाती है। सीता-हरण में स्वर्ण-मृग का प्रसंग नहीं है, अपितु रावण योगी के रूप में राम का विश्वास जीतकर उनकी अनुपस्थिति में सीता को उठाकर ले जाता है। रावण को ड्रैगन (सर्पराज)-के रूप में चित्रित किया गया है, जो चीनी प्रभाव है। यहां हनुमान के रूप में शक्र (इन्द्र) हैं और वही समुद्र पर सेतु-निर्माण करते हैं। कथा का अन्त भी मूल राम-कथा से भिन्न है।
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha |
इंडोनेशिया में बाली का हिंदू और जावा-सुमात्रा के मुस्लिम, दोनों ही राम को अपना नायक मानते हैं। जाकार्ता से लगभग 15 मील की दूरी पर स्थित प्राम्बनन का मंदिर इस बात का साक्षी है, जिसकी प्रस्तर भित्तियों पर संपूर्ण रामकथा उत्कीर्ण है।
थाईलैंड में रामकथा को इस तरह आत्मसात किया गया कि उन्हें धीरे-धीरे यह लगने लगा कि राम-कथा की सृजन उनके ही देश में हुआ था। वहां जब भी नया शासक राजसिंहासन पर आरूढ़ होता है, वह उन वाक्यों को दोहराता है, जो राम ने विभीषण के राजतिलक के अवसर पर कहे थे। यह मान्यता है कि वहां राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट “भूमिबल अतुल्य तेज” राज्य कर रहे हैं, जिन्हें नौवां राम कहा जाता है। थाईलैंड में “अजुधिया” “लवपुरी” और “जनकपुर” जैसे नाम वाले शहर हैं। सन् 1340 ई. में राम खरांग नामक राजा के पौत्र थिवोड ने राजधानी सुखोथाई (सुखस्थली) को छोड़कर ‘अयुधिया’ अथवा ‘अयुत्थय’ (अयोध्या) की स्थापना की थी। उल्लेखनीय है कि राम खरांग के पश्चात् राम प्रथम, राम द्वितीय के क्रम में नौ शासकों के नाम राम-शब्द की उपाधि से विभूषित रहे। थाईलैंड में रामकथा पर आधारित ग्रंथ ‘रामकियेन’ है। ‘रामकियेन’ का अर्थ होता है राम की कीर्ति। भारतीय ‘रामलीला’ की भांति ‘रामकियेन’ नाट्यरूप में भी लोकप्रिय है।
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha |
म्यांमार में प्रथम रचना सत्राहवीं शताब्दी की ‘रामवस्तु’ के रूप में मिलती है और इसमें राम कथा को बौद्ध जातक कथाओं की भांति प्रस्तुत किया गया है। इसके नायक बोधिसत्व राम हैं, जो कि तुषित स्वर्ग से देवताओं की प्रार्थना पर अवतरित हुए हैं। दूसरी रचना ‘महाराम’ है, जिसका रचनाकाल अठारहवीं शताब्दी के अन्त अथवा उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ माना जाता है। यह कृति भी गद्य में है। तीसरी प्रमुख कृति है ‘राम-तोन्मयो’। जो 1904 ईं. में साया-हत्वे द्वारा लिखी गई। इन कृतियों के अतिरिक्त रामकथा पर आधारित जो ग्रंथ मिलते हैं वे हैं- ‘राम-ताज्यी’, ‘राम-भगना’, ‘राम-तात्यो’, ‘थिरी राम’, ‘पोन्तव राम’ तथा ‘पोन्तव राम-लखन’। इसके अतिरिक्त म्यानमार में 1767 ई. से थामाप्वे नामक रामलीला भी खेली जाती है।
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha |
कम्बोडिया यानी वर्तमान कम्पूचिया में पहली शताब्दी से ही रामकथा की लोकप्रियता के प्रमाण मिलते हैं। ‘रामकेर’ या ‘रामकेर्ति’ कम्बोडिया का अत्यधिक लोकप्रिय महाकाव्य है, जिसने यहां की कला, संस्कृति, साहित्य को प्रभावित किया है। छठी सातवीं शताब्दी के मंदिरों तथा शिलालेखों में रामकथा से संबंधित विवरण मिलते हैं। कम्बोडिया में आज भी यह रामकथा सत्य एवं न्याय की विजय की प्रतीत मानी जाती है। कम्बोडिया में राम के महत्व का जीता-जागता सबूत है अंगकोरवाट, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां बुद्ध शिव, विष्णु, राम आदि सभी भारतीय देवों की मूर्तियां पाई जाती हैं। इसका निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था। इस मंदिर में कई भाग हैंकृअंगकोरवाट, अंगकोर थाम, बेयोन आदि। अंगकोरवाट में रामकथा के अनेक प्रसंग दीवारों पर उत्कीर्ण हैं। जैसे सीता की अग्नि परीक्षा, अशोक वाटिका में रामदूत हनुमान का आगमन, लंका में राम-रावण युद्ध, वालि-सुग्रीव युद्ध आदि यहां की रामायण का नाम रामकेर है, जो थाई रामायण से बहुत मिलती-जुलती है।
फिलीपीन्स में रामकथा ‘महारादिया लावना’ के रूप् में लिती है जो 13वीं-14वीं शताब्दी की कृति मानी जाती है। यहां की राम-कथा में राम को मन्दिरी, लक्ष्मण को मंगवर्न, सीता को मलाइला तिहाइया कहा जाता है। फिलीपीन्स की राम-कथा में भी असत्ंय पर सत्य की विजय दिखाई गयी है। इसमें भी रावण असत का प्रतीक है जो सत्य से पराजित होता है। यद्यपि इसमें रावण की मृत्यु की कथा नहीं है।
मलेशिया में ‘मलय रामायण’ की प्राचीनतम प्रति सन् 1633 ई. में बोदलियन पुस्तकालय में संग्रहीत की गयी थी। विशेष बात यह कि यह अरबी लिपि में है और मुस्लिम देश होने पर भी वहां भारतीय संस्कृति का प्रभाव रहा है। मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर राम लक्ष्मण और सीता नाम जोडते हैं। मलय रामकथा ‘हिकायत सेरी राम’ के नाम से भी मिलती है जिसमें रावण के चरित्र से लेकर रामजन्म, सीताजन्म, रामसीता विवाह, राम वनवास, सीताहरण और सीता की खोज, युद्ध, सीता त्याग तथा राम-सीता के पुनर्मिलन तक की कथा है।
लाओस लाओस में राम-कथा संगीत, नृत्य, चित्रकारी, स्थापत्य और साहित्य की धरोहर के रूप में ताड़-पत्रों पर सुरक्षित है। यहां राम-कथा ‘फालम’ और ‘पोम्पचाक’ के नाम से मिलती है। ‘फालम’ एक जातक-काव्य है जिसमें भगवान बुद्ध जेतवन में एकत्र भिक्षुओं को श्रीराम की कथा सुनाते हैं।
तिब्बत में राम-कथा ‘अनामक जातक’ तथा ‘दशरथ जातक’ के रूप में स्थापित हुई। डॉ. कामिल बुल्के के अनुसार यद्यपि तिब्बत में राम-कथा बौद्ध-कथाओं के रूप में पहुंची थी, तथापि इस पर गुणभद्र के ‘उत्तरपुराण’ तथा ‘गुणाढ्य’ की रचना में सीता रावण की पुत्री बतायी गयी है। मंगोलिया में प्रचलित रामकथा बौद्ध राम-कथाओं पर आधारित है। मंगोलिया में राम-कथा राजा जीवक की कथा है, जो आठ अध्यायों में विभक्त है। इस कथा की छः पुस्तकें लेनिनग्राद पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। श्रीलंका में राम-कथा का कोई विशेष ग्रन्थ नहीं मिलता। फिर भी कुमारदास का ‘जानकीहरण’ उल्लेखनीय है।
दुनिया के अनेक देशों में ‘रामायण’ के अनुवाद को बड़े चाव से पढ़ा जाता है। अंग्रेजी में तुलसीदासकृत रामायण का पद्यानुवाद पादरी एटकिंस ने किया जो बहुत लोकप्रिय है। फ्रांसीसी विद्वान गासां दतासी ने 1839 में रामचरित् मानस के सुंदर कांड का अनुवाद किया। फ्रांसीसी भाषा में मानस के अनुवाद की धारा पेरिस विश्विविद्यालय के श्री वादि विलन ने आगे बढाई। रूसी भाषा में मानस का अनुवाद करके अलेक्साई वारान्निकोव ने रामकथा को इस तरह आत्मसात किया कि उनकी समाधि पर मानस की अर्द्धाली ‘भलो भलाहिह पै लहै’ लिखी गई है। उनकी यह समाधि उनके गांव कापोरोव में स्थित है। चीन में वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस दोनों का पद्यानुवाद हो चुका है। इसके अलावा डच, जर्मन, स्पेनिश, जापानी आदि भाषाओं में भी रामायण के अनुवाद हुए हैं। जहां तक रामकथा पर व्यापक चिंतन का प्रश्न है तो अब तक 14 देशों में 18 से अधिक रामायण सम्मेलन हो चुके हैं। विद्वानों का यह भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य ‘इलियड’ तथा रोम के कवि नोनस की कृति ‘डायोनीशिया’ की रामकथा में अद्भुत समानता है।
सारांशतः यह बात अकाट्य रूप से कही जा सकती है कि रामकथा की वैश्विकसत्ता अद्वितीय है ओर वैश्विक जनमानस को जिस कथा ने सर्वाधिक प्रभावित किया है वह रामकथा ही है। रामकथा में जो राजनीतिक एवं सांस्कृतिक अवधारणाएं हैं वे विश्व में व्याप्त आतंकवाद एवं राजनीतिक क्लेश समाप्त कर सकती हैं यदि उन्हें आत्मसात किया जाए। सच तो यह है कि यह कालजयी कथा सच्चे अर्थों में विश्व को एक सुंदर एवं संस्कारी ग्लोबल गांव बनाने की क्षमता रखती है।
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar - 23.04.2018 |
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‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और रामकथा’’ शोध संग्रह में प्रकाशित लेख....
Ramkatha Ki Vaishik Satta Me Nihit Usaki Mulyavatta – Dr (Miss) Sharad Singh in the book - Vaishvik Jeevan Mulya Aur Ramkatha |
Ramkatha Ki Vaishik Satta Me Nihit Usaki Mulyavatta – Dr (Miss) Sharad Singh in the book - Vaishvik Jeevan Mulya Aur Ramkatha |
Ramkatha Ki Vaishik Satta Me Nihit Usaki Mulyavatta – Dr (Miss) Sharad Singh in the book - Vaishvik Jeevan Mulya Aur Ramkatha |
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Ramkatha Ki Vaishik Satta Me Nihit Usaki Mulyavatta – Dr (Miss) Sharad Singh in the book - Vaishvik Jeevan Mulya Aur Ramkatha Book Cover |
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar (MP) - 23.04.2018 |
Dr Sharad Singh with Dr Shyam Sundar Dubey In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar (MP) - 23.04.2018 |
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar (MP) - 23.04.2018 |
Dr Sharad Singh In International Conference On Ram Katha at Govt College Garhakota, Sagar (MP) - 23.04.2018 |
आदरणीय,m'em,
जवाब देंहटाएंआपका आलेख पढ़ने के पश्चात ऐसा लगा कि जैसे लिखते समय माँ सरस्वती ने ज्ञान का भंडार आपके लिए सुपुर्द कर दिया हो।
आप ज्ञान कि अद्भुत साक्षात मूर्ति है,आपका चिंतन,विलक्षण हैं, इस लेख में आपने साक्षात ज्ञान की गंगा बहाई है,जो रामकथा की वास्तविकता के साक्षात दर्शन कराती है।
- रमेश चन्द सैनी
शोधार्थी-कोटा राजस्थान