- डॉ. शरद सिंह
पहला अध्याय
धांसू साहित्य की महिमा
हमारे बुजुर्गों ने तराजू तौल कर यह कहावत बनाई होगी कि ‘जो चलता है, वह बिकता है और जो बिकता है वही चलता है।’ इस चलने और बिकने के समीकरण में साहित्य और साहित्यकार के बीच दिलचस्प ‘केमिस्ट्री’ पाई जाती हैं। यूं तो केमिस्ट्री विज्ञान की एक शाखा है जिसमें बहुत कठिन, दुरूह फामूर्ले पाए जाते हैं और जिसे प्रयोगशाला में सि़द्ध किया जाता है । किन्तु कुछ लोगों का मानना है कि आजकल केमिस्ट्री आवारा किस्म की हो गई है। वह फिल्मी हीरो-हिरोइनों के बीच चक्कर लगाती रहती है। साहित्य और साहित्यकार के बीच की केमिस्ट्री भी इस केमिस्ट्री से अलग नहीं है। साहित्य और साहित्यकार के बीच फिल्मी हीरो-हिरोइन की भांति भावुक, संवेदनशील और चर्चित करने योग्य केमिस्ट्री होती है। एक अच्छा साहित्यकार अपने साहित्य के लिए जीता है और उसका अच्छा साहित्य उसे अमर बना देता है। एक बुरा साहित्यकार अपने साहित्य के लिए मरता है और उसका बुरा साहित्य उसे सच्ची-मुच्ची का नहीं किन्तु साहित्य जगत के लिए परलोकधामवासी बना देता है। अब साहित्य और साहित्यकार एक-दूसरे के लिए अच्छे हैं या बुरे, यह तो उनके बीच की केमिस्ट्री पर निर्भर रहता है। अतः जिस साहित्यकार की केमिस्ट्री अपने साहित्य के साथ ठीक-ठाक रहती है, वह सुपर-डुपर हिट साबित होता है। खैर, यहां केमिस्ट्री-वेमिस्ट्री की चर्चा क्यों की जाए, जब बात चल रही हो धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खों की।
धांसू साहित्य में वह बात होती है जो और किसी प्रकार के साहित्य में नहीं होती है। यह साहित्यकार को पाताल से उठा कर आकाश में पहुंचा सकता है। कहने का आशय यह है कि धांसू साहित्य वह होता है जो किसी साहित्यकार को रातो-रात आसमान का सितारा बना दे, पाठकों की आंखों का तारा बना दे और शेष साहित्यकारों को बेचारा बना दे।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि धांसू साहित्य वह साहित्य है जो साहित्यकार की लेखकीय नैया को पार लगाने की दम रखता है। धांसू साहित्य साहित्यकार को साहित्य जगत का महत्वपूर्ण व्यक्ति बना देता है। एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति जो साहित्य पुरस्कारों और सम्मानों का निर्णायक बनता है, एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति जो सर्वसम्मति से विद्वान माना जाता है, एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति जिसे साहित्यिक सभाओं में अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि बनाकर लोग स्वयं को धन्य अनुभव करते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को अपना पंथ, अपनी धारा चलाने, अपनी शिष्य मंडली बनाने का स्वतः अधिकार मिल जाता है।
क्रमशः ............
जब समष्टि हो सोचा जाये,
जवाब देंहटाएंजो लिखना हो, सबको भाये।
धांसू बात कही है आपने
जवाब देंहटाएंधांसूं नुस्खे का इंतज़ार है ... :):)
जवाब देंहटाएंआपके लेखन के इस पहलु के बारे में न जानकारी थी न कल्पना की थी।
जवाब देंहटाएंआप भी न ...?
इतना सरस लेख को क्रमशः लगा कर ब्रेक लगा दिया और उत्कंठा के बढ़ा दिया। इन्हें एक ही बार में पूरा पढ़ने का अवसर दीजिए। कितना भी लम्बा क्यों न हो हम पढ़ेंगे ... और पूरा पढ़ेंगे।
बहुत सुंदर रचना ..!
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंhttp://seawave-babli.blogspot.com
वाह! आपके इस धांसू साहित्य लेखन को पढ़कर हम निशब्द हो गए! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
बहुत सुंदर रचना|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसीख रहे हैं!
जवाब देंहटाएंधांसू साहित्य लेखन पर बढ़िया आलेख...
जवाब देंहटाएंअब तो ठान ही ली है धांसू साहित्य रच कर मानूंगा चाहे जो हो जाये//// :)
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