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बुधवार, सितंबर 08, 2010

किस-किस को कटवाओगे, केशू !

                              
            -डॉ. सुश्री शरद सिंह


         ”तुम्हारे लिए एक बुरी ख़बर है..ललित का फोन था. उसने बताया कि हिम्मा मर गई.“ केशू ने फोन क्रेडिल पर रखते हुए मुझे बताया.       
        ”हिम्मा मर गई? कब? कैसे?“ मैंने चकित होते हुए पूछा. ख़बर सचमुच बहुत बुरी थी,सुनते ही दिल पर बोझ-सा आ गिरा.
                 ”अब कैसे मर गई? ये तो नहीं बताया उसने बहरहाल,चलो जान छूटी उससे.“ केशूने जिस उपेक्षा भरे स्वर में कहा उससे मेरा मन वितृष्णा से भर उठा. कुछ भी हो, हिम्मा एक इंसान थी और एक इंसान की मौत पर उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है.फिर हिम्मा तो एक इंसान ही नहीं बल्कि एक कमजोर औरत थी जिसकी मौत सारी दुनिया की औरतों के जीवन पर प्रश्नचिन्ह लगाने की ताक़त रखती है.उस हिम्मा की मौत पर ऐसी उपेक्षा भरा स्वर?  
         ”क्या सोचने लगीं? भई, मैंने नहीं मारा है तुम्हारी हिम्मा को. मुझे यूं घूर-घूर कर मत देखो.“ केशू ने ठिठोली करते हुए कहा.
         वे ऐसी ठिठोली कर सकते हैं क्योंकि हिम्मा की मौत ने उनके दिल का बोझ जो हल्का कर दिया है. वे सोच रहे होंगे कि अब मैं किसका पक्ष लूंगी? न रहा बंास,न बजेगी बंासुरी! उनकी दृष्टि में तो हिम्मा की मृत्यु एक ऐसी कथा का अंत है जो फिर कभी दोहराई नहीं जायेगी कि इस कथा के समापन के साथ-साथ कथा का प्रभाव भी समाप्त हो जायेगा.वे क्यों भूल जाते हैंकि जले हुए पेड़ में भी कहीं न कहीं से अंकुर फूट पड़ते हैं.
     ”अरे मेम सॉब, इस ग़रीब को नाश्ता-वाश्ता मिलेगा या नहीं?“ केशू ने अपना चुहल भरा अंदाज़ जारी रखते हुए कहा.
       ”लगाती हूं नाश्ता...आप झटपट नहा लीजिए.“ मैंने अपने मनोभावों पर काबू पाते हुए कहा.
       ”हां,सोच रहा हूं कि ललित से मिलते हुए दफ्तर जाउंगा.“ केशू ने तौलिया कंधे पर डालते हुए कहा.
      ”क्यों? अब ललित से क्यों मिलना है?“ यह पूछने के साथ ही मैंने अपना होंठ काट लिया.क्या आवश्यकता थी ऐसा प्रश्न पूछने की? हम कई बार ऐसे सवाल कर बैठते हैं, जिन पर तत्क्षण पछतावा भी होता है.यद्यपि पछतावे से बात तो वापस नहीं होती.
     
     ”बहुत खूब! तोे क्या अब ललित से भी रिश्ता तोड़ लें हम?“ केशू ने विनोदी स्वर में पूछा.फिर समझाते हुए बोले,”यक़ीन मानो कि मुझे हिम्मा की मौत को लेकर सिर्फ इस बात की खुशी हैकि अब उसे ले कर तुम परेशान नहीं होगी,वरना मुझे तो लगने लगा थाकि उसके मामले को लेकर हमारे बीच दूरियंा बढ़ने लगी हैं.भगवान के लिए, अब भूल जाओ इस सारे किस्से को.“
     ”सच कहते हो,हिम्मा हमारी थी ही कौन? चिन्ता मत करो जल्दी ही भूल जाउंगी सब कुछ.तुम जल्दी करो नहीं तो तुम्हें देर हो जायेगी.“ केशू का मन रखने के लिए मैंने कह तो दिया लेकिन  मेरा दिल जानता हैकि हिम्मा या उससे जुड़ी घटनाओं को भुला देना असंभव है.इसके साथ ही मुझे महसूस हुआ कि कितने दिनों बाद मैंने केशू के मन रखने वाली कोई बात कही है.वरना जब से हिम्मा का प्रकरण मुझ पर प्रभावी हुआ था तब से मेरे और केशू के बीच आपसी तालमेल या एक-दूसरे का मन रखने वाली एक भी बात नहीं हुई. कम-से-कम मेरी तरफ से तो हरगिज़ नहीं. शा
        केशू नहाने चले गए और मैं अपने-आप में उमड़ती-घुमड़ती नाश्ता तैयार करने में जुट गई.बाहर नीम के पेड़ पर बैठा कौवा निरन्तर कांव-कांव किए जा रहा था.कौवे की आवाज़ से चिढ़ है केशू को.वे अकसर पेड़ कटवाने की बात करने लगते हैं.मैं हमेशा उन्हें रोक देती हूं.इस नीम के पेड़ और कौवों की कांव-कांव से इस व्यस्त जीवन में कुछ तो प्राकृतिकता का अहसास होता रहता है वरना बनावटीपन तो लगा ही है जीवन के साथ, उससे तो किसी भी तरह से बचा नहीं जा सकता है.यह नीम का पेड़ मेरी संवेदनाओं को स्पंदन प्रदान करता रहता है,भला मैं कैसे कटने दे सकती हूं इसे.
        अभी कामवाली बाई चंदा के आने में अभी देर थी.  प्रायः वो केशू के दफ्तर जाने के बाद ही आती थी.  इस लिए भी मेरे और उसके बीच  लंबे-लंबे संवाद होते रहते.  हिम्मा के बारे में शूरुआत उसी ने की थी. चंदा अंागन में बैठ कर बरतन मांज रही थी और मैं ऊनी कपड़ों को धूप दिखाने के लिए उनकी घड़ी खोल-खोल कर फैला रही थी. मैंने महसूस किया था कि चंदा आते ही कुछ कहने को उत्सुक थी किन्तु उस समय मेरा ध्यान बच्चोें की क़िताबें और कपड़े समेटने में था. यही मेरी दिनचर्या भी है. बच्चे स्कूल जाने के पहले अपना सारा सामान इधर-उधर बिखरा जाते हैं और मैं उनके जाते ही उनके सामान व्यवस्थित करने में जुट जाती हूं. बच्चों के सामान व्यवस्थित करके जैसे ही मैं ऊनी कपड़े लेकर अंागन में पहुंची कि चंदा की जुबान में दबी ख़बर धारा बन कर बह निकली.
       ”बाई’सा, आप हिम्मा को तो जानती हैं न! “   चंदा के स्वर में जानने का आग्रह कम, अनिवार्यता अधिक थी.
      ”कौन हिम्मा?“ मुझे सचमुच किसी हिम्मा की याद नहीं आइ
      ”आपको याद नहीं है हिम्मा की?“ चंदा ने ऐसे आश्चर्यसे भर कर कहा जैसे हिम्मा को याद रखना मेरे लिए सबसे अहम काम था और मुझे अपने काम में चूकना नहीं चाहिए था.
      ”अब इतने लोग आते रहते हैं,मैं भला किस-किस की याद रखूं.क्या वो तुम्हारे साहब के ऑफिस में है?“मैं अपनी असमर्थता चंदा के सामने स्वीकार करते हुए कहा. बात भी सही थी, केशू सिंचाई विभाग में हैं अतः दसियों कर्मचारियों और मज़दूरों की घर में आवाजाही बनी रहती है. उनमें से अधिकतर अपना नाम बताते-बताते दुखड़ा सुनाने लगते हैं.न चाहते हुए भी उनकी बातें सुननी पड़ती हैं. केशू तो मेरे इस रवैये का मज़ाक उड़ते रहते हैं लेकिन मैं यही सोचकर केशू के मज़ाक को अनदेखा कर देती हूं कि अगर मैं इन मुसीबत के मारों के लिए कुछ कर नहीं सकती हूं तो कम से कम इनका दुखड़ा तो सुन सकती हूं. कहते हैं न कि कहने-बोलने से दुख हल्का हो जाता है.
        ”नहीं,हिम्मा साबजी के दफ्तर में नहीं है.उसकी मां मेरी चचिया सास लगती है.पिछले साल मैं जब मैहर गई थी,देवी के दर्शन को तब मेरे बदले हिम्मा की मंा काम करने आती थी और एक दिन हिम्मा की मंा को दस्त लगने लगे थे तब अपनी मां की जगह हिम्मा आई थी काम करने.मेरे मैहर से लौटने पर आपने ही मुझे बताया था और हिम्मा के काम की तारीफ करते हुए कहा था कि चंदा अब तो मुझे तेरे से अच्छी कामवाली का पता चल गया है,अब तो तू चाहे तो चारो धाम का तीरथ करने को चली जा.“ चंदा ने मुझे हिम्मा का स्मरण कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
         ”अच्छा वो हिम्मा ! वैसे मैंने तो तुझे चिढ़ाने के लिए उसकी तारीफ की थी वरना तेरे जैसा अच्छा काम भला और कोई कर सकता है?“मैंने उसे मस्का लगाते हुए कहा. आखिर दुनिया की हर गृहिणी अपनी कामवाली बाई को नाराज़ करने के पहले सौ बार सोचती है.भला मैं भी केैसे ये दुस्साहस करती?
         ”हमाओ मतबल जो नईयंा.“अपनी तारीफ सुनकर खुश होती हुई चंदा बुंदेली में  बोल उठी,”काय, का हम जानत नईयंा का के आपको हमाओ काम भोत साजो लगत है.“
         ”खैर, अब मुझे हिम्मा की याद आ गई है,तो क्या हुआ हिम्मा को?“मैंने बात बदलने की गरज से कहा.
          ”न पूछो बाई’सा, हिम्मा तो बरबाद हो गई.बो ई दुनिया में मूं दिखाबे के जोग नई रही.कछु नई बचो ऊके लाने.“ चंदा एक संास में बोल उठी.
         ”अरे, ऐसा क्या हुआ उसको? उसके पति ने उसे छोड़ दिया क्या?“मैंने षॅाल को फैलाते हुए अपनी पहली अटकल व्यक्त की. मैं जानती हूंकि निचले तबके में अकसर ये घटनाएं घटित होती रहती हैं.हिम्मा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा जिस पर तब तक षोक-संवेदनाओं का दौर चलता रहेगा जब तक कि हिम्मा किसी और घर के जाकर नहीं बैठ जाएगी.निश्चित रूप से हिम्मा पर उसके पति ने उल्टे-सीधे आरोप लगाए होंगे तभी तो चंदा उसके ”मूं न दिखा पाने “की बात कर रही है.
        ”ऐसी बात नईयंा. ऊको तो अबे ब्याओ तक नई भओ.“ चंदा ने उंसास भरते हुए कहा.
   ”अरे? फिर क्या हुआ हिम्मा को?“ मेरे मन में हिम्मा को लेकर पहलीबार सच्ची जिज्ञासा कुलबुलाई.
   ”ऊकी इज्जत लूट ली गई है,बाई!“,चंदा ने विस्फोट-सा करते हुए कहा.
   ”क्या??“मैं चंदा की बात सुनकर सकते में आ गई. मुझे ऐसी ख़बर की तो ख़्वाब में भी आषा नहीं थी.
         चंदा मेरे आश्चर्यपर कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की बजाए अपने पल्लू से अपनी अंाखें पोंछने लगी.उसकी अंाखों में अंासू थे या नहीं ये तो मुझे पता नहीं चला किन्तु एक रिष्तेदार और एक औरत होने के नाते उसका दुखी होना स्वाभाविक था.
   ”किसने किया ये सब?“एक स्वाभाविक-सा प्रश्न मेरे होंठों से फिसला.
        ”दाऊ साहब के लड़के ने.“चंदा ने बताया.
        ”पकड़ा गया क्या वो?“दाऊ साहब के लड़के का जिक्र सुन कर मुझे कोई आश्चर्यनहीं हुआ.ये तो सदियों से होता चला आ रहा है. दाऊ साहबों के लड़के इसी प्रकार निचले तबके की बहू-बेटियों की इज्जत से खेलते चले आ रहे हैं.वैसे दाऊ साहब का लड़का लगता तो  नहीं है ऐसा लेकिन किस भेड़ की खाल में भेड़िया छुपा है,यह दावा कभी कोई नहीं कर सकता है.हो सकता हैकि वो इसी तरह का हो.नीम के पेड़ पर बैठे कौवे को भी तो सिर्फ देख कर यह नहीं कहा जा सकता है कि वह कौन-सी आंख से काना है.
        ”ऐसे लोग कहंा पकड़े जाते हैं?वे लोग तो कह रहे हैंकि लड़के को झूठ-मूठ फंसाया जा रहा है. “ चंदा ने मुंह बनाते हुए कहा.
        ”ऐसा नहीं है,चंदा! औरत आखिर औरत होती है और हर औरत की अस्मत कोई न कोई मर्द ही लूटता है,इसमें अमीर या ग़रीब औरत का क्या फर्क़?“मैंने चंदा को समझाना चाहा.
         ”अच्छा! अगर दाऊ साहब की बिटिया या बहू की कोई इज्जत लूटता तो गोलियंा न चल जातीं?“चंदा भड़क कर बोली.
        ”वो तो ठीक है,चंदा! लेकिन इससे फर्क़ क्या पड़ता है? आखिर औरत की लुटी हुई अस्मत तो लौट नहीं आती है. औरत औरत है,चंदा! चाहे वह दाऊ साहब के घर की हो या हिम्मा हो.कोई अंतर नहीं है दोनों की नियति में.“मैंने चंदा को अपनी बात मनवानी चाही लेकिन वह मेरे किसी भी तर्क को मानने को तैयार नहीं थी.
         कुछ देर हम दोनों के बीच चुप्पी छाई रही, हवा की सरसराहट और चिड़ियों-कौवों की चींख-पुकार ही सुनाई दे रही थी.
        ”आप बुरा न मानना बाई’सा, मगर आप तो ऐसा कहोगी ही आखिर आप लोग सोई दाऊ साहब मेल के ठहरे.“ चंदा का यह सीधा आरोप सुन कर मैं सन्न रह गई.
     ”क्या मतलब तुम्हारा?“ मैंने कठोर स्वर में पूछा.
     ”आप लोग भी तो ऊंची जात के हो.“ चंदा ने धीमें स्वर में जवाब दिया.
     ”तो इससे क्या हम लोग भी बलात्कारी हो गए?“ मैंने लगभग डंाटते हुए कहा.
     ”नई बाई’सा, हमाओ मतबल जे नइयंा. वो तो तरफदारी करने की बात पे हमने कही.“ चंदा ने सकपका कर अपनी बात की सफाई दी.
     ”अच्छा-अच्छा, तुम अपना काम करो.“मैंने अपने स्वर में नर्मी नहीं आने दी और मैं अंागन से उठ कर कमरे में चली आई.जी चाह रहा था कि दरवाजों-खिड़कियों को कसकर बंद कर दूं जिससे एक भी ध्वनि कमरे में प्रवेष न कर सके.मुझे हर ध्वनि में चंदा का आरोप सुनाई दे रहा था.
      चंदा ने काम निपटाने के बाद मुझे आवाज़ देकर जाने की सूचना दी. मैंने कमरेके भीतर से ही ”ठीक है“ कह कर काम चला लिया.
      मेरा माथा घूम गया था उसकी अनर्गल बातें  सुन कर. आखिर उसने क्या सोच कर ऐसा गंदा आरोप लगाया? क्या मैं ओर केशू भी उसे अत्याचारी नज़र आते हैं? ”मैं कल ही दूसरी काम वाली तलाष करूंगी,ये बहुत सिर चढ़ गई है,“ये सोच कर मैंने अपने मन के बोझ को हल्का करना चाहा.
       शाम को केशू के दफ्तर से वापस आने पर मैंने चाय बनाई और चाय पीने के दौरान ही केशू को चंदा का पूरा किस्सा कह सुनाया.
       ”बहुत खूब! और बतकाव करो कामवाली बाइयों से.“केशू ने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा.
     ”आप समझ नहीं रहे हैं.“मैं झुंझला उठी.
     ”मैं तो समझ रहा हूं मगर तुम नहीं समझ रही हो.“केशू ने संजीदा होते हुए कहा,”जिसके घर में डाका पड़ता है उसे हर इंसान डाकू नज़र आता है.अब ऐसे हालात में तुम उसे काम से निकाल दोगी तो उसके मन में मौजूद धारणा और पक्की हो जाएगी.बेहतर यही होगा कि इन सब  चर्चाओं में तुम मत पड़ो.“
          केशू की बात अपनी जगह सही थी लेकिन मेरा जी चाहा कि केशू से कहूं कि चर्चा उसने षुरू की थी, मैंने नहीं. लेकिन जानेअनजाने चंदा की बातें और हिम्मा की छवि मेरे मन-मस्तिष्क पर छाती जा रही थी.
         प्रतिदिन की भांति चंदा दूसरे दिन फिर काम पर आई. शूरुआत में अबोलापन रहा किन्तु फिर चंदा ने ही बात छेड़ी.चर्चा घरेलू काम-काज को लेकर ही षुरू हुई.दो-चार संवादों के बाद हम दोनों ही सहज हो गए.ऐसा नहीं लग रहा थाकि कल ही हम दोनों के बीच कोई कटु बात हुई हो. यद्यपि मैं मन ही मन उत्सुक थी हिम्मा और उसके अपराधी के बारे में कुछ और जानने को.मेरे मन की झिझक मुझे कुछ भी पूछने से रोक रही थी. आखिर समस्या का अंत हुआ चंदा की ओर से.   
        ”बाई’सा, कल की बात का बुरा तो नहीं माना आपने? मेरी भी मत मारी गई थी जो आप लोगन खों सोई दाऊ साहब के बरोबर बोल दिया.“चंदा के स्वर में पश्चाताप की कितनी मात्रा थी, यह तो मैं समझ नहीं पाई लेकिन उसके इस कथन ने मेरे भीतर की झिझक को जरूर तोड़ दिया.
       ”दाऊ साहब का लड़का पकड़ा गया क्या?“ मैंने अपने मन की बात पूछ ही डाली.
        ”नहीं, कछु ओरें कह रये थे के ऊने जमानत  करवा ली है. अब पुलिस कछु ने कर पेहे.“ चंदा ने थके स्वर में उत्तर दिया,”अब देखो का होत है आगे?“
       ”धीरे-धीरे सब ठीक होगा,चंदा! पापियों को अपने पाप की सज़ा अवश्य मिलती है.“ मैंने चंदा को तसल्ली दी.
      ”का जाने बाई’सा, का हुइयेे!“ एक ठंडी संास भरी चंदा ने.
         चंदा काम करके चली गई लेकिन मेरे मन-मस्तिष्क पर एक बवंडर छोड़ गई.दोपहर को जब मैं आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटी तो बिस्तर मुझे कांटों की सेज के समान चुभने लगा.मुझे रह-रह कर हिम्मा की याद आने लगी.उसका चेहरा तो मुझे  बहुत अच्छे-से याद नहीं था लेकिन रह-रह कर एक छवि मेरी अंाखों में उभर रही थी जो हिम्मा की नहीं तो हिम्मा जैसी ज़रूर थी.लोग कैसे कर लेते हैंकिसी औरत के साथ बलात्कार? बलात् सहवास में भला क्या सुख मिलता होगा उन्हें?एक चींखती-चिल्लाती,प्रलाप करती,विरोध करती औरत...कौन-सा आनन्द कमल जाता है उन्हें? पक्षियों का षोर भी मुझे हिम्मा की चीत्कार-सा प्रतीत हो रहा था. ऐसे में मुझे भी लगा कि इस नीम के पेड़ को कटवा देना चाहिए ताकि प्रलापपूर्ण ध्वनियंा आना बंद हो जाएं. फिर मुझे तत्क्षण सुध आई कि अरे, ये मैं क्या सोच रही हूं? क्या मेरे विचार ,मेरी प्रकृति बदलने लगी है?
       अप्रत्याषित,अपरिचित प्रश्नों से घिरी मैं कब नींद की आगोश में चली गई, पता ही नहीं चला.बच्चों के स्कूल से वापस आने पर मेरी नींद खुली.सपने में क्या-क्या देखा ये तो मुझे याद नहीं रहा किन्तु कुछ बुरा-बुरा अवश्य देखा होगा तभी मेरा सिर भारी था.मेरी उड़ी-उड़ी रंगत और सुस्तपन को देख कर बच्चों ने समझदारी का परिचय दिया. उन्होंने फ्रिज से स्वयं ही नाश्ता निकाल लिया और खा-पीकर खेलने चले गए.मैं सोफे पर लेट गई.रात का भोजन  बनाना था लेकिन न हाथ-पंाव साथ देते महसूस हो रहे थे और न मन. ऐसा लग रहा था मानो घर में ही कुछ बुरा घट गया हो.केशू के आने तक मैं वैसी ही लेटी रही.
केशू ने देखा तो चिंतित हो उठे.उन्हें लगा कि मैं बीमार हूं.मैंने उन्हें विष्वास दिलाया कि मैं बीमार नहीं हूं बस यूं ही मन खराब है.इस पर केशू ने प्रस्ताव रखा कि घूमने चलते हैं,होटल से खाना भी खा आएंगे.थोड़ी-सी ना-नुकुर के बाद मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.केशू ने ही बच्चों को आवाज़ दी और उन्हें तैयार हो जाने को कहा. बच्चे अपने पिता के इस प्रस्ताव पर बेहद उत्साहित हुऔर पलक झपकते तैयार हो गए.
       हम लोग काफी देर तक पब्लिक पार्क में बैठे रहे.केशू जानते हैं कि मुझे प्रकृति से लगाव है इसीलिए जब कभी मेरा मन विचलित होता है वे तत्काल पार्क घूमने का कार्यक्रम बना डालते हैं. पार्क में आ कर बच्चे खेल-कूद का आनन्द लेते लगेे और केशू आने नए प्रोजेक्ट के बारे में मुझे बताते लगेे.जब केशू को महसूस हुआ कि उनकी बातों में मेरा ध्यान नहीं जा रहा है तो उन्होंने उस समय की घटनाओं की चर्चा छेड़ दी जब हमारे जीवन में बच्चों का पदार्पण नहीं हुआ था. मुझे उन रोमंाचित कर देने वाले दिनों की यादें भी बहला नहीं पा रही थीं. वे अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहे को मुझे बहलाने का लेकिन मेरा मन जीवन की बुनियादी बातों पर अटका हुआ था.
      ”तुम औरतों के साथ यही दिक्कत है कि जो बात एक बार अपने मन में बैठा लेती हो फिर उसे किसी भी क़ीमत पर निकलने नहीं देती हो.टेक इट ईज़ी,यार!“केशू अब झुंझला उठे.
     यह स्वाभाविक था क्योंकि जो बात मुझे चुभ रही थी उसका न तो उन्हें पता था और न ही उससे उनका कोई सरोकार था.एक औरत की पीड़ा जितनी गहराई से कोई औरत समझ सकती है,उतनी गहराई से कोई पुरुष नहीं.हंा, यदि कोई औरत चाहे तो... .
     ”आप समझ नहीं रहे हैं.“मैंने प्रतिवाद करना चाहा
     ”अब इसमें न समझ पाने वाली बात कौन-सी है? ज़ाहिर है कि तुम हिम्मा के साथ घटित हादसे को लेकर परेशान हो लेकिन माला, ऐसी घटनाएं तो आए दिन होती रहती हैं,तुम किस-किस के लिए षोक मनाती रहोगी? और फिर इसमें भी सच और झूठ का पता करना मुश्किल होता है.क्या पता दाऊ याहब के लड़के को फंसाने के लिए हिम्मा को मोहरा बनाया गया हो?वरना जग हंसाई से बचने के लिए औरत हर दुख चुपचाप पी जाती है.हिम्मा ऐसी तीरंदाज़ कहंा से निकल आई?इन छोटे तबके की औरतों का कोई भरोसा नहीं,ये पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं.“
      केशू ने समझाने के अंदाज़ में कहा लेकिन उसकी ये बातें सुन कर मैं भीतर तक खौल गई.
     ”आप इतना गंदे ढंग से कैसे सोच सकते हैं,केशू? हिम्मा के साथ बलात्कार सचमुच हुआ है.“मैंने लगभग चींखते हुए कहा.
     मेरे स्वर की तीव्रता से केशू घबरा गए और उन्होंने इधर-उधर नज़रें दौड़ा कर देखा कि किसी ने मेरी आवाज़ तो नहीं सुनी.उन्हें यह महसूस करके संतोष हुआ कि बच्चों के षोर से भरे इस पार्क में किसी को मेरी आवाज़ सुनने की फुर्सत नहीं थी.
     ”तुम बौरा गई हो.चंदा की बातें तुम पर कुछ ज़्यादा ही असर कर गई हैं.“केशू ने दबे किन्तु तीखे स्वर में कहा.
      ”चंदा की नहीं की बातें नहीं लोगों का दृष्टिकोण चुभ रहा है मुझे.“मैंने भी उसी तीखे ढंग से उत्तर दिया.
      ”कैसा दृष्टिकोण?“ केशू ने पूछा.उन्होंने यह नहीं पूछा कि किसका दृष्टिकोण? निश्चित रूप से उन्होंने मेरे कटाक्ष को अपने ऊपर ही लिया था, लेना भी चाहिए था अ्रगर वे भी और लोगों की भंाति ही सोचते हैं तो.आखिर जब वे किसी पेड़ को कटवाने की बात बिना हिचक कर सकते हैं तो उन्हें मानवीय संवेदनाओं से भला क्या सरोकार हो सकता है?
      ”मैं आपकी बात नहीं कर रही हूं“मैंने जानबूझ कर यह जताया और कर आगे बोली,”आपनेआज का अख़बार नहीं पढ़ा क्या?  लोग औरत की पीड़ा को भी वर्गों में बंाटने पर क्यों तुले हुए हैं?
बलात्कार की पीड़ा हर औरत के लिए एक-सी होती है चाहे वह किसी भी बर्ग की क्यों न होे फिर यह क्यों लिखा जाता है कि ‘हरिजन महिला के साथ बालात्कार या आदिवासी महिला के साथ बलात्कार’? क्या इसी लिए कि आप जैसी सोच वाले व्यक्ति मामले को आसानी से झूठा ठहरा सकें!“
       उत्तेजनावश मैं कब व्यक्तिगत आक्षेप पर उतर आई, मुझे पता नहीं चला.
       ”माला! ये तो तुम हद से बाहर जा रही हो. तुम भला मुझे क्यों दोष दे रही हो? मैंने क्या अपराध किया है?“केशू के स्वर में आश्चर्य और क्रोध का मिला-जुला भाव था.
       ”सॉरी!“ हम दोनों के बीच उभरती कटुता को विराम देने के उद्देष्य से कहा.
       हम लोग उठ खड़े हुए.पार्क का आह्लादित करने वाला वातावरण अचानक बोझिल लगने लगा था.जितने उत्साह से बच्चे हमारे निकट आए थे उतनी ही जल्दी शांत भी हो गए शायद उन्हें हमारे ‘खराब मूड’ का अहसास हो गया था.बच्चों के सामने हम लोग आपस में कभी लड़ते नहीं हैं लेकिन आपसी अबोलापन जाने कैसे उन्हें अहसास करा देता हैकि मेरे और केशू के बीच कोई ‘बात’ हुई है.भोजनालय तक का रास्ता चुप्पी ओढ़े हुए गुज़र गया.
       हम लोग चार कुर्सियों वाली मेज के इर्द-गिर्द बैठ गए.बैरे ने ‘मीनू’ ला कर रखा ही थाकि मेरे पीठ पीछे से आवाज़ आई,”हलो! तो ये टीम यहंा जमी है!“
      स्वर सुन कर ही मैं समझ गई कि यह ललित है.मैंने सोचाकि चलो अच्छा हुआ,अभी इसी से पूछती हूं.देखूं,क्या सफाई देता है ललित अपने दृष्टिकोण के बारे में? आखिर ये अखबार वाले भी जो जी में आए लिखते रहते हैं.
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        ”क्या बात है भाभी, मूड ठीक नहीं है क्या? बड़ी गुमसुम नज़र आ रही हैं,केशूजी से लड़ाई हो गई है क्या?“ललित ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में पूछा.
       ”तुम्हारी भाभी का तो दिमाग़ चलता हो गया है.“केशू ने चुभते स्वर में ललित को जानकारी दी.यह सुनकर मुझे अच्छा नहीं लगा.दुनिया भर की आक्रामकता मेरे भीतर आ समाई.मैं कुछ बोल पाती इसके पहले ही केशू बोल उठे,”तुम जानते नहीं हो, वो हिम्मा वाले प्रकरण में बेकार दूसरों को दोषी बनाया जा रहा है,असली दोषी तो मैं हूं, मैं!“
     ”ऐसा तो नहीं कहा मैंने!“मैंने प्रतिवाद किया.
      ”ओफ्फो,ये मामला तो बड़ा ही संगीन नज़र आ रहा है.“ललित ने चिंतित होने का अभिनय करते हुए कहा.कोई और समय होता तो मुझे उसके अभिनय पर हंसी आ जाती लेकिन इस समय
मुझे उसके अभिनय में सरासर भद्दापन नज़र आया.
     ”तो कल के अख़बार में इस अपराधी की स्वीकारोक्ति छाप दूं?“ललित ने फिर चुहल की.
     ”क्यों नहीं, तुम्हारी भाभी का बस चले तो दुनिया के सभी मर्दोंंको फंासी चढ़वा दें.“ केशू ने व्यंग किया.
    ”इट इज़ टू मच!“ मैं तिलमिला उठी.
    ”लगता है मैं ग़लत वक़्त पर आ गया हूं.“ हम दोनों की वार्तालाप की षैली देख कर ललित बोला.
    ”नहीं,ऐसी कोई बात नहीं है.बस, यूं ही ज़रा मैंने कह दियाकि हिम्मा जैसे किसी भी मामले
में लोगों के दृष्टिकोण सही नहीं रहता है.पता नहीं क्यों इन्हें बुरा लग गया.“ मैंने ललित से कहा.
      ”तुम्हीं बताओ ललित, क्या ऐसे मामलों में सच-झूठ का पता आसानी से लगाया जा सकता है?“केशू ने ललित से पूछ डाला.
       ”अरे छोड़िए भी,आप लोग कहंा का विवाद पाल बैठे? ऐसे प्रश्न तो संसद तक में हल नहीं हो पाते हैं, फिर बहस करने के लिए हमारे नेतागण ही काफी हैं,आप लोगों को कष्ट करने की ज़रूरत नहीं है,भई! “ललित ने पल्ला झाड़ते हुए कहा.
       केशू की भंगिमा देखते हुए मैंने बात वहीं समाप्त कर देना उचित समझा,आखिर बच्चे भी साथ में थे और मैं नहीं चाहती थी कि हिम्मा का नाम बार-बार उनके सामने आए. उसी क्षण मेरे मन में विचार आया कि हर बार औरत को ही क्यों चुप हो जाना पड़ता है? बहरहाल,  मैंने बात बदलने का प्रयास किया.ललित ने मेरी मदद की.कुछ ही देर में सब कुछ ठाक-ठाक होने लगा.बच्चों के चुटकुले और फरमाइषें लौट आईं.खाना-खाकर लौटते समय तक केशू के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी थी.मैं भी मुस्कुरा रही थी लेकिन मन की फांस अभी निकली नहीं थी.
     
           बच्चे सो चुके थे.केशू के खर्राटों की भी ध्वनि बता रही थीकि वे गहरी नींद में हैं.सिर्फ़ मैं जाग रही थी.घर के बाहर से कुत्तों के भौंकने और रोने के स्वर सुनाई पड़ रहे थे.माहौल में भारीपन था.मैं भी सोना चाह रही थी लेकिन नींद मेरी अंाखों से कोसों दूर थी.मेरे दिमाग़ में एक ही बात बार-बार घूम रही थीकि सब के सब कायर हैं,सच को स्वीकारने से भी डरते हैं.इसीलिए तो किसी भी अमानवीय घटना को भी जाति-वर्ग के षिकंजे में जकड़ कर छोटा साबित करने पर तुल जाते हैं और फिर हर प्रश्न से मुंह चुराने की कोषिष करते रहते हैं.भला अंतर है केशू और ललित की सोच में? अंतर तो मुझमंे और हिम्मा में भी नहीं है.वह भी औरत है और मैं भी.बस,अंतर है तो इतना ही कि मैैं किसी की पत्नीं हूं, किसी की भाभी हूं और हिम्मा आज किसी की कुछ भी नहीं,वह मात्र एक प्रकरण है.वह आज किसी भी वर्ग में खड़ी की जा सकती है.वह आज एक औरत नहीं, शतरंज की बिसात का एक मोहरा मात्र है लेकिन केशू की तरह यह मान लेना भी तो ग़लत होगा कि हिम्मा निचले तबके की होने के कारण बिक गई होगी.न जाने क्यों मेरा मन हिम्मा की तरफदारी पर उतारू था.बाहर नीम के पेड़ पर उल्लू के चींखने की आवाज़ आई.मुझे लगाकि पुरूशों के लिए औरतें इस नीम के पेड़ के समान ही तो हैं,जब तक चाहा उनकी षीतलता का आनन्द लिया और जब चाहा कटवा डाला.
         रात लगभग अंाखों-अंाखों में ही कटी. देर से सोकर उठने वाले केशू के पास सुबह इतनी फुर्सत नहीं थी कि वे मेरी अंाखों में रतजगे की लालिमा देख पाते.केशू दफ्तर चले गए और बच्चे स्कूल. चंदा आई.पता नहीं केस अंतः प्रेरणा के वशीभूत हो कर मैंने हिम्मा से मिलने की इच्छा प्रकट की.यह इच्छा मेरे मन में कब जागी, मुझे स्वयं भी पता नहीं.चंदा तुरंत राजी हो गई. चंदा के काम समाप्त कर लेने के बाद मैं उसके साथ हिम्मा के घर की ओर चल पड़ी.
         घर से निकलते समय मन में कोई दुविधा नहीं थी किन्तु जैसे ही चंदा ने बताया कि ”बस बाई’सा,इस गली के नुक्कड़ पर ही हिम्मा रहती है.“ -सुन कर मेरे पैरों का वज़न एकाएक बढ़ गया. मन में प्रश्न कौंधा कि मैं हिम्मा से मिलने क्यों जा रही हूं? मैं अपने इस प्रश्न का उत्तर अपने भीतर नहीं खोज पाई कि दूसरा प्रश्न मेरे मन में कौंधा, मैंने यहंा आ कर कोई गलती तो नहीं की?
लगातार निरूत्तर होती हुई मैं अपने-आप पर झुंझलाने लगी.
        हिम्मा के झुग्गी-झोपड़ीनुमा घर में सन्नाटा-सा खिंचा था.मैं तो सोच रही थीकि गहमागहमी होगी.चंदा हिम्मा की मंा को पुकार लगाती हुई घर के भीतर दाखिल हो गई.मुझे दरवाज़े पर ठिठकती देख,उसने मुझे भी आने का इशारा किया.चंदा की आवाज़ सुन कर हिम्मा की मंा पता नहीं कहंा से सामने आ खड़ी हुई.उसने मुझे देखते ही रोना षुरू कर दिया. चंदा उसे चुप कराने लगी.वहंा का वातावरण इतना बोझिल हो गया था कि मुझे पहली बार आने यहंा आने का पछतावा हुआ.
    ”काय बाई,कैसी हो?“चंदा ने वहीं खटिया पर गुड़ीमुड़ी हो कर लेटी हुई लड़की से पूछा.लड़की ने उत्तर नहीं दिया.फिर चंदा ने मुझसे प्रश्न किया,”बाई’सा,आपने पहचाना? यही है हिम्मा.देखो तो बाई कैसी गत हो आई है.“
      मैंने हिम्मा को ध्यान से देखा,वाकई मैं उसे पहचान नहीं पाई.उसका मुरझाया चेहरा मेरी काल्पनिक हिम्मा से अधिक मैला और अवसाद भरा लग रहा था.मैं हिम्मा को दिलाया देने को षब्द चुन ही रही थीकि हिम्मा का पिता आ गया.शायद बाहर किसी ने उसे मेरे आने के बारे मे बता दिया था.उसने अपना परिचय खुद ही दिया.

     ”मैं इस करमजली का बाप हूं...कीड़े पड़ें उस पापी को जिसने मेरी बच्ची को बिगाड़ा...बाई’सा, अब आप तो इतनी कृपा कर दो कि मेरी बच्ची को मुआवजा जल्दी मिल जाए क्यों उसी से अब इसका गुज़ारा होगा,अब कोई षादी तो करने से रहा इसके साथ.“ हिम्मा का पिता बिना किसी लाग-लपेट के बोला. उसका इस तरह बोलना मुझे रूचा नहीं.हिम्मा की मंा लगातार सुबक रही थी.मैं जल्दी-से-जल्दी वहंा से निकल पड़ने के लिए उद्यत हो उठी.
     हिम्मा से बोल पाने के लिए शब्दों का टोटा महसूस कर रही थी मैं.मैंने हिम्मा के माथे पर
हाथ रख दिया. मेरे हाथ का स्पर्ष पा कर हिम्मा की मृतप्राय देह में हरकत हुई. उसने मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझसे पूछा, ”हमने थाने जा के कछु गलत करो का?“
     उसके स्वर के कंपन ने मुझे सिहरा दिया.मेरा मन कमजोर पड़ने लगा. लेकिन मैंने अपने मन पर नियन्त्रण पाते हुए कहा,”नहीं, तुमने बिलकुल ठीक किया!“
        घर लौटने पर भी मैं अपने अन्दर एक अनजानी घबराहट का अनुभव करती रही.नीम के पेड़ पर पक्षी चहचहा रहे थे लेकिन मुझे ऐसा लग रही थाकि अभी कोई कौवा कोई अषुभ सूचना दे जाएगाा. शाम होते-होते मुझे बुखार आ गया.मैं हिम्मा को निरन्तर अपने आसपास उपस्थित पा रही थी. केशू देर से घर आए. घर आने पर जब उन्होंने मुझे बुखार में तपता हुआ पाया तो वे परेशान हो उठे.उनकी परेशानी देख कर मुझे ग्लानि का अनुभव होने लगा.जब मन की अकुलाहट सीमा पार करने लगी तो मैंने केशू को बता दिया कि मैं हिम्मा से मिलने गई थी.मुझे डर थाकि यह सुन कर केशू मुझ पर बरस पड़ेंगे लेकिन शायद मेरी बीमारी को देख कर वे अपना क्रोध पी गए. उनके व्यवहार की ऊष्णता ने मेरे षरीर की तपन को कम कर दिया. मैं बड़े अजीब मानसिकता से घिर गई थी,कभी मैं उन्हें दोषी मानती तो कभी अपने-आपको.
        दूसरे दिन मेरा बुखार उतर गया.तनिक कमजोरी अवश्य महसूस होती रही.हिम्मा को लेकर केशू से फिर कोई बात नहीं हुई.ऊपर से मेरी दिनचर्या व्यवस्थित भले ही दिखाई देने लगी किन्तु हिम्मा की हताष छवि मेरी अंाखों से मिटी नहीं.मैं यह सोच कर अवश्य निष्चिन्त हो गई थी कि केशू ने हिम्मा और उसको लेकर हम दोनों के बीच हुए विवाद को भुला दिया है.बस, मैं चंदा से हिम्मा के बारे में चर्चा कर लिया करती.वह यही बताती रही कि आज अखबार वाले आए थे,कल फलंा नेता आए थे और परसों कोई महिला नेता आई थी.

          एक दिन ललित केशू से मिलने आया तो दोनों के बीच चर्चा के दौरान हिम्मा की बात होने लगी. उस समय मैं रसोईघर में थी अतः दोनों ने यही समझा कि मैं उनकी बातें नहीं सुन रही हूं.जबकि हिम्मा का नाम मेरे कानों में पड़ते ही मेरे कान खड़े हो गए थे.
       ”लगता है विधानसभा में बात उठेगी. हंालाकि दाऊ साहब ने भी अपनी लामबंदी कर ली है.“ललित बता रहा था.
      ”इस मामले को आखिरकार जाना तो ठंडे बस्ते में ही है लेकिन इसकी अंाच ने तो मेरे घर को भी झुलसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.तुम्हारी भाभी तो बस.. .“यह केशू का स्वर था.
     ”छोड़ो भी यार, महिलाएं होती ही अधिक संवेदनशील हैं.वे तो सिनेमा के पर्दे पर हिरोइन को रोता देख कर रो पड़ती हैं.“ललित ने केशू को समझाया.
      इसके बाद मुझे और कुछ भी नहीं सुना गया क्योंकि मेरा मन एक बार फिर विद्रोह करने लगा.मेरा जी किया कि मैं ललित से पूछूं कि क्या उसकी नज़र में कल्पना और यथार्थ में कोई फर्क नहीं है जो वह हिम्मा की पीड़ा की तुलना सिनेमाई कल्पना से करके औरतों की संवेदना का माखौल बना रहा है? मगर मैंने नहीं पूछा क्योंकि कोई लाभ नहीं था तर्क-वितर्क से,मात्र कटुता ही जाग उठती मेरे और केशू के बीच.
      उस दिन के बाद से मैंने चंदा से भी हिम्मा की चर्चा करनी बंद कर दी.मैं हिम्मा के विचार  से भी अपने आपको दूर कर लेने का प्रयास करने लगी.किन्तु सदैव सही होता हैकि हम जिस विचार से बाहर आना चाहते है,उतने ही अधिक उसमें समातेे जाते हैं.मैं भी हिम्मा के विचार से खुद को उबार नहीं सकी.मेरा यह खयाल भी गलत निकला कि केशू ने हिम्मा के मामले को दिल से निकाल दिया है.बिना किसी कारण एक अबोलापन हम दोनों के बीच तैरने लगता.
      इसी दौरान एक घटना और घटित हो गई.मेरी चचिया सास जो राजधानी में रहती हैं और किसी नारी संगठन की अध्यक्षा हैं,अचानक आ गईं.मैंने उनकी आवभगत की.सासजी ने बताया कि वे अपने संगठन के जरिए हिम्मा के प्रति आवाज़ उठाना चाहती हैं और इस काम में उन्हें मेरी मदद चाहिए.मैं किसी से कहना नहीं चाहती थी लेकिन विवशतावश उन्हें बताना पड़ा कि हिम्मा के मामले में मेरा कोई भी क़दम केशू को बुरा लगेगा.‘प्रोग्रेसिव’ विचारों की हिमायती सास ने मुझे आड़े हाथों लिया.उन्होंने मुझे ‘पिछड़े हुए विचारों वाली’,‘दकियानूसी’,‘लिजलिजी’ और न जाने क्या-क्या  कह डाला किन्तु उनके आरोप चुपचाप पी जाने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था मेरे पास.काश, वे मेरी स्थिति समझ पाती.बलात्कार हिम्मा के साथ हुआ था लेकिन उससे उत्पन्न मानसिक पीड़ा मैं भी झेल रही है. मैं तो हिम्मा की तरह किसी का हाथ पकड़ कर यह भी नहीं पूछ सकती थीकि मैं जो कर रही हूं,वह ठीक है अथवा नहीं.पूछने से कोई लाभ भी नहीं है,सब वही कहेंगे जो मेरी चचिया सास ने मुझसे कहा.उपदेश देना सरल जो होता है.सासजी से मैं न कुछ कह सकती थी और न कहा,वरना जी में तो आया थाकि पूछूंकि मेरे मंा-बाप से दहेज लेते समय कहां चली गई थी उनकी यह ”प्रोग्रेसिवनेस“   चचिया सास हिम्मा से मिल कर उससे किसी कागज़ पर अंगूठा वगैरह लगवा कर चली गईं. हिम्मा की छवि नीम के पेड़ के समान मेरी दिनचर्या की विषय-वस्तु बन गई. उसकी चर्चा प्रत्यक्षतः न हो कर भी होती रहती.

      हिम्मा मर गई! यह खबर मुझे झकझोर गई.मुझे ऐसा लगा कि जैसे हिम्मा के मृत्यु-पत्र पर मैंने भी हस्ताक्षर किए हों.मेरा शरीर पसीने से भीगने लगा.बाहर नीम के पेड़ पर कौआ कांव-कांव  कर रहा था.
      ”मैं इस पेड़ को ही कटवा दूंगा. न रहेगा पेड़, न चींखेगा कौआ!“ केशू ने कौवे की कांव-कांव पर झुंझलाते हुए कहा.
       ”किस-किस को कटवाओगे, केशू?“ सहसा मेरे मुंह से निकला और मेरी आंखों के आगे धुंए का एक बादल तैर गया.
(सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित ‘तीली-तीली आग’ कहानी संग्रह से )

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