Dr (Miss) Sharad Singh
संगीत रूपक
जनमानस के आत्मीय कवि: बाबा नागार्जुन
- डॅा. सुश्री शरद सिंह
एम-111,शांतिविहार,रजाखेड़ी,
सागर (म.प्र.)-470004
drsharadsingh@gmail.com
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कवि बाबा नागार्जुन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित संगीत रूपक।
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संगीत रूपक
जनमानस के आत्मीय कवि: बाबा नागार्जुन
- डॅा. सुश्री शरद सिंह
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अवधि : 30 मिनट
सूत्रधार : स्त्री स्वर
पुरुष स्वर
सस्वर काव्यपाठ कर्ता एवं गायक-गायिका
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दृश्य प्रारम्भ
नदी-तट का वातावरण, मद्धिम संगीत के साथ, पक्षियों के कलरव की आवाज़, खेत में बैलों को हकालते हरवाहे का स्वर.........पार्श्व से उभरता स्त्री स्वर। (फेड इन-फेड आउट)
स्त्री स्वर -(मुग्ध स्वर में) कितना अच्छा लगता है गांव में सुबह का वातावरण.....ये पक्षियों का कलरव....खेतों में अपने बैलों को ले जाते हरवाहे.....वाह! सबकुछ कितना मन को मोह लेने वाला है!
पुरुष स्वर -(कवितापाठ करता हुआ)
अपने खेत में हल चला रहा हूँ
इन दिनों बुआई चल रही है
इर्द-गिर्द की घटनाएँ ही
मेरे लिए बीज जुटाती हैं
हाँ, बीज में घुन लगा हो तो
अंकुर कैसे निकलेंगे !
जाहिर है
बाजारू बीजों की
निर्मम छटाई करूँगा
खाद और उर्वरक और
सिंचाई के साधनों में भी
पहले से जियादा ही
चौकसी बरतनी है..........
स्त्री स्वर -(प्रशंसात्मक स्वर में) अरे वाह! यह किसकी कविता है? (हंस कर) कम से कम तुम्हारी तो कदापि नहीं है, है न!
पुरुष स्वर - हां, तुमने सही कहा....यह मेरी कविता नहीं है....
स्त्री स्वर -(जिज्ञासा के स्वर में) तो फिर किसकी कविता है यह? ऐसा लगता है मानो इन चंद पंक्तियों में एक किसान का पूरा चिन्तन व्यक्त कर दिया गया हो....
पुरुष स्वर -यह कविता है हिन्दी साहित्य जगत् के यशस्वी कवि नागार्जुन की जिन्हें सभी प्यार से बाबा नागार्जुन कह कर पुकारते थे।
स्त्री स्वर -बाबा नागार्जुन? हां, मैंने भी उनकी अनेक कविताएं पढ़ी हैं...परन्तु वे तो तीखे व्यंगों से ओतप्रोत और करारा कटाक्ष करने वाली कविताओं के लिए जाने जाते हैं....यह तो उनकी कविताओं का एक और पक्ष है....वैसे मुझे उनके बारे में अधिक पता भी तो नहीं है....मुझे अपने इस अल्प ज्ञान पर संकोच का अनुभव हो रहा है..... मुझे उनके बारे में विस्तार से बताओ न!
पुरुष स्वर -ठीक है...तो सुनो!
..........बाबा नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को मिथिला के तरउनी ग्राम में हुआ था। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिन्दी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। इनके पिता श्री गोकुल मिश्र एक किसान थे और खेती के अलावा पुरोहिताई का कार्य भी करते थे। पुरोहिताई के सिलसिले में आस-पास के इलाकों में आया-जाया करते थे। उनके साथ-साथ नागार्जुन भी बचपन से ही “यात्री” हो गए। आरंभिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से संस्कृत में हुई किन्तु आगे स्वाध्याय पद्धति से ही शिक्षा बढ़ी। राहुल सांकृत्यायन के “संयुक्त निकाय” का अनुवाद पढ़कर बाबा नागार्जुन की इच्छा हुई कि यह ग्रंथ मूल पालि में पढ़ा जाए। इसके लिए वे श्रीलंका चले गए जहां वे स्वयं पालि पढ़ते थे और बदले में मठ के “भिक्खुओं” को संस्कृत पढ़ाते थे। श्रीलंका में उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली।
गांव के वातावरण में पले-बढ़े बाबा नागार्जुन ने प्रकृति एक-एक रंग को , एक-एक भाव को बहुत निकट से जांचा परखा और महसूस किया।
इसीलिए बाबा नागार्जुन की कविताओं में प्रकृति का स्वरूप कैनवास पर उकेरे गए सुन्दर, सजीव चित्र की भांति दिखाई देता है।
प्रथम गीत -गायक अथवा गायिका के स्वर में -
अमल धवल गिरि के शिखरों परबाबा नागार्जुन
बादल को घिरते देखा है......
(नरेशन जारी)
स्त्री स्वर - बाबा नागार्जुन पर्वत शिखरों और बादलों के चितेरे कवि होने के साथ ही खेतों और किसानों के कवि भी थे.....
पुरुष स्वर - हां, तुमने ठीक कहा! .....बाबा नागार्जुन के लिए कवि-कर्म कोई आभिजात्य शौक नहीं, बल्कि ‘खेत में हल चलाने’ जैसा है। वह कविता को रोटी की तरह जीवन के लिए अनिवार्य मानते हैं। उनके लिए सर्जन और अर्जन में भेद नहीं है। इसलिए प्रकृति, संस्कृति और राजनीति, तीनों को समान भाव से उनकी कविता के विषय बने।
बाबा को फसलों का पक कर सुनहरा हो जाना बहुत लुभाता था क्योंकि वे जानते थे कि पकी हुई फसलों से भरे हुए खेत जीवन में धन और धान्य की पूर्ति करते हैं।
द्वितीय गीत -गायक अथवा गायिका के स्वर में -
बहुत दिनों बाद
अब की मैंने जी भर देखीं
पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान
बहुत दिनों के बाद.........
(नरेशन जारी)
पुरुष स्वर - बाबा नागार्जुन छः से अधिक उपन्यासों, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिलीय कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य की रचना की।
उनके कविता हैं - अपने खेत में, युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियां, खिचड़ी विपल्व देखा हमने, हजार-हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, इस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपने, और रत्नगर्भ।
उपन्यास हैं - रतिनाथ की चाची, बलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, नयी पौध, वरुण के बेटे, दुखमोचन, उग्रतारा, कुंभीपाक, पारो, आसमान में चाँद तारे। व्यंग्य- अभिनंदन तथा एक निबंध संग्रह जिसका नाम है - अन्न हीनम क्रियानाम। उनकी मैथिली कविताएं - पत्रहीन नग्न गाछ के नाम से संग्रहीत हैं।
स्त्री स्वर - गद्य और पद्व लेखन में समान अधिकार रखने वाले कवि बाबा नागार्जुन ने जब लिखना शुरू किया था तब हिन्दी साहित्य में छायावाद उस चरमोत्कर्ष पर था, जहां से अचानक तेज ढलान शुरू हो जाती है, और जब उन्होंने लिखना बंद किया तब काव्य जगत में सभी प्रकार के वादों के अंत का दौर चल रहा था। बाबा अपने जीवन और सर्जन के लंबे कालखंड में चले सभी राजनीतिक एवं साहित्यिक वादों के साक्षी रहे फिर भी वे किसी वाद से जुड़ने के बजाए मेहनतकश किसानों और मजदूरों के पक्ष में कलम चलाते रहे।
तृतीय गीत -गायक अथवा गायिका के स्वर में -
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भू खण्ड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें .........
(नरेशन जारी)
बाबा नागार्जुन |
स्त्री स्वर -एक जनकवि के रूप में नागार्जुन खुद को जनता के प्रति जवाबदेह समझते थे। वे मानते थे कि जो लोग राजनीति और साहित्य में सुविधा के सहारे जीते हैं वे दुविधा की भाषा बोलते हैं। वे इस दुविधा में कभी नहीं पड़े। इसीलिए सदा स्पष्टवादी रहे।
पुरुष स्वर -नागार्जुन के काव्य में अब तक की पूरी भारतीय काव्य-परंपरा ही जीवंत रूप में उपस्थित देखी जा सकती है। उनका कवि-व्यक्तित्व कालिदास और विद्यापति जैसे कई कालजयी कवियों के रचना-संसार के गहन अवगाहन, बौद्ध एवं मार्क्सवाद जैसे जनहित दर्शन के व्यावहारिक रूप को सहज ढंग से प्रस्तुत करता है।
स्त्री स्वर -आमजन जीवन की समस्याओं, चिन्ताओं एवं संघर्षों से प्रत्यक्ष जुड़ाव के कारण उनके काव्य में जो तीखा तेवर था वह काव्यमंचों से भी श्रोताओं को अपनी ओर खींचता था। तथा लोकसंस्कृति एवं लोकहृदय की गहरी पहचान से निर्मित है।
पुरुष स्वर -बाबा नागार्जुन को उनके काव्य-सृजन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1994 में उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर के भी सम्मानित किया था।
चतुर्थ गीत -गायक अथवा गायिका के स्वर में -
गीत के दो पद -
बहती है जीवन की धारा......
मलिन कहीं पर, विमल कहीं पर,
थाह कहीं पर अतल कहीं पर
कहीं उगाती, कहीं डुबोती,
अपना दोनों कूल किनारा
बहती है जीवन की धारा .........
तैर रहे कुछ, सीख रहे कुछ
हंसते हैं कुछ, चींख रहे कुछ
कुछ निर्भय हैं लदे नाव पर
खेता है मल्लाह बिचारा
बहती है जीवन की धारा .........
(नरेशन जारी)
पुरुष स्वर -मैथिली, हिन्दी और संस्कृत के अलावा पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि अनेकानेक भाषाओं का ज्ञान भी उनके लिए इसी उद्देश्य में सहायक रहा है। उनका गतिशील, सक्रिय और प्रतिबद्ध सुदीर्घ जीवन उनके काव्य में जीवंत रूप से प्रतिध्वनित-प्रतिबिंबित है। नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिकतम कवि थे।
स्त्री स्वर -जन संघर्ष में अडिग आस्था, जनता से गहरा लगाव और एक न्यायपूर्ण समाज का सपना, ये तीन गुण नागार्जुन के व्यक्तित्व में ही नहीं, उनके साहित्य में भी देखे जा सकते हैं। नागार्जुन ने छंदमुक्त और छंदबद्ध दोनों शैलियों में समान रूप से प्रभावी कविताएं लिखीं। पारंपरिक काव्य रूपों को नए कथ्य के साथ प्रयोग करने और नए काव्य कौशलों को संभव करनेवाले वे अद्वितीय कवि कहे जा सकते हैं।
ऐसे अप्रतिम प्रतिभा के धनी लोकजनमानस के कवि बाबा नागार्जुन ने 05 नवम्बर 1998 को इस दुनिया से विदा ले ली किन्तु जनमानस में वे एक ओजस्वी और आत्मीय कवि के रूप में सदा जीवित रहेंगे और उनकी कविताएं जीवन को सार्थक ढंग से जीने का संदेश देती रहेंगी।
गीत का तीसरा पद -
सांस-सांस पर थकने वाले
पार नहीं जा सकने वाले
उब-डुब, उब-डुब करने वाले
तुम्हें मिलेगा कौन सहारा
बहती है जीवन की धारा .........
गायन स्वर समापन संगीत में डिज़ाल्व होता हुआ
(समाप्त)
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( साभार: आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित )
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लाजवाब। बाबा नागार्जुन को इससे अच्छी तरह प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🙏🌹🙏
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