संस्मरण - 1 .. सच कहते थे नाना जी - डॉ शरद सिंह
मेरे नाना ठाकुर संत श्यामचरण सिंह जी के कारण मुझे बचपन से अख़बार पढ़ने की आदत पड़ी। सच कहा जाए तो मैंने स्कूल की किताबें पढ़ना बाद में सीखा और अख़बार पढ़ना पहले सीख लिया था। कारण यह था कि मेरे नाना जी को मोतियाबिंद हो गया था। वे स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी थे। पक्के गांधीवादी।
आजादी की लड़ाई की धुन में उन्होंने खुद की सेहत पर ध्यान ही नहीं दिया और असमय मोतियाबिंद की चपेट में आ गए। उन दिनों मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराना जोखिम भरा माना जाता था। लिहाजा रोग बढ़ता गया और नानाजी को दिखाई देना कम हो गया। लेकिन समाचारों के मामले में वे हमेशा जागरुक रहते थे। सवेरे से अख़बार पढ़ना उनकी आदत थी किन्तु जब से दृष्टि कमज़ोर हुई, मेरी और मेरी दीदी वर्षा सिंह की यह ड्यूटी थी कि उन्हें अख़बार पढ़ कर सुनाया करें।
उन दिनों मुझे समाचारों की तो समझ थी नहीं लेकिन अख़बार पढ़ कर सुनाना एक विशेष काम लगता था। बड़ा मज़ा आता था उस समय जब मेरी सहेलियां पूछतीं कि तुम सुबह क्या करती हो? और मैं गर्व से कहती मैं अख़बार पढ़ती हूं। पढ़ कर सुनाने वाली बात गोलमाल रहती। मेरी सहेलियां मुंह बाए मेरी ओर ताकती रह जातीं।
उन दिनों हमारे घर वाराणसी से प्रकाशित होने वाला दैनिक ‘आज’ समाचार पत्र डाक द्वारा आया करता था। पोस्टमेन की कृपा से कभी-कभी नागा हो जाता और फिर चार अंक इकट्ठे आ जाते। फिर भी उन दिनों रेडियो के अलावा अख़बार ही समाचार के माध्यम होते थे, इसलिए बासी अख़बार भी ताज़ा ही रहता। नाना जी बड़े चाव से सुनते और जब कोई परिचित घर आता तो उससे समाचारों के बारे में चर्चा-परिचर्चा करते।
मैंने बचपन में दैनिक ‘आज’ में गाजापट्टी की समस्या के बारे में पढ़ा था। उस समय मुझे रत्तीभर पता नहीं था कि ये गाजापट्टी है कहां। आज सोचती हूं तो लगता कि हे भगवान ये समस्या तो वर्षों पुरानी है! इसी तरह के कई राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे आज इसीलिए चौंकाते हैं कि जिस समस्या के बारे में मैंने अपने बचपन में पढ़ा था, वह आ तक बरकरार है। हम इंसान समस्याओं को शायद ख़त्म ही नहीं करना चाहते हैं।
नानाजी कहा करते थे-‘‘लड़ाई-झगड़े से कोई हल नहीं निकलता, यदि निकलता होता तो महात्मा गांधी अहिंसा का रास्ता नहीं चुनते। वे जानते थे कि शांति से निकाला गया हल स्थायी रहता है।’’
सच कहते थे नाना जी!!!
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