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शनिवार, जून 04, 2011

धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)....पार्ट टू

- डॉ. शरद सिंह

        
 दूसरा अध्याय
धांसू साहित्य क्या है?

धांसू साहित्य की महिमा के बाद अब लाख रुपए का सवाल उठता है कि यह धांसू साहित्य है क्या? इस लखटकिया सवाल के दुमछल्ले सवाल हैं कि इसे लिखने की प्रेरणा कहां से प्राप्त की जाती है? इसे कैसे लिखा जाता है ? कैसे पढ़ा जाता है?  तो इसके लिए अपनी बुद्धि के द्वार खोलने आवश्यक हैं। 
        बुद्धि के द्वार खोलने के लिए उन सभी पुस्तकों को पढ़ना चाहिए जिन पर घमासान विवाद हुआ हो, जिसे प्रायोजित या गैरप्रायोजित ढंग से प्रतिबंधित करने का प्रयास किया गया हो और जो देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद लिखी गई हों। क्यों कि अंग्रेजों के जमाने की प्रतिबंधित पुस्तकों से धांसू साहित्य का कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, विशेष रूप से बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध और इक्कीसवीं सदी की अब तक लिखी गई पुस्तकों में से विवादास्पद पुस्तकों को छांट-छांट कर पढ़ना चाहिए। इससे बुद्धि के द्वार न केवल खुल जाएंगे, बल्कि लम्बे समय तक खुले ही रहेंगे और बंद करने का प्रयास करने पर भी बंद नहीं होंगे। विचारणीय है कि जब बुद्धि के द्वार खुल जाएं तो यह सुगमतापूर्वक तय किया जा सकता है कि आपको किस प्रकार का धांसू साहित्य लिखना है। जी हां, धांसू साहित्य भी कई प्रकार का होता है-जैसे-अपनी कथा, पराई कथा और इतिहास कथा आदि-आदि।
           धांसू साहित्य लिखने के नुस्खे भी अनेक हैं किन्तु व्यक्ति को सदैव अनूभूत नुस्खों पर ही अमल करना चाहिए। इससे हानि की संभावना कम से कम रहती है। अनुभूत नुस्खों को अपनाने से यह लाभ रहता है कि आपको पहले ही पता रहता है कि आपको कब-कब, क्या-क्या, और कैसे-कैसे करना है। तो ध्यान दीजिए अनुभूत नुस्खा नंबर एक पर- 
                      तीसरा अध्याय

               नुस्खा नंबर एक


      यदि आप धांसू साहित्य के रूप में अपनी कथा लिखना चाहते हैं तो उसमें यह आवश्यक नहीं है कि सब कुछ अपने बारे में ही लिखा जाए अथवा सब कुछ सच-सच ही लिखा जाए। यदि अपनी कथा को धांसू बनाना है तो उसमें विख्यात-कुख्यात व्यक्तियों से अपने संबंधों पर सर्च लाईट से प्रकाश डालिए। यदि सर्च लाईट न जमे तो हेलोजन लैम्प से प्रकाश डाला जा सकता है। परायों के साथ अपने संबंधों का वर्णन करते समय अंतरंग संबंधों पर अधिक से अधिक शब्द खर्च कीजिए। इस बिन्दु पर आप शब्दों का जितना निवेश करेंगे, बाद में उतनी ही ख्याति पके हुए आमों की तरह टपाटप आपकी झोली में गिरेगी और आपको आम के आम ही नहीं वरन गुठली के दाम भी मिलेंगे। आप अपनी समस्त दुर्दशाओं और बेचारगी का खुलासा अपनी कथा में  कर सकते हैं। फिर भी आपकी दुर्दशा से अधिक काम की चीज साबित होगी ख्यात-कुख्यात व्यक्तियों से आपके अंतरंग संबंधों का रंगारंग वर्णन। इसे पढ़ कर पाठक तो हतप्रभ होंगे ही, वह ख्यात-कुख्यात व्यक्ति भी सन्नाटा खा कर रह जाएगा, जिससे आप अपने संबंधों का बखान अपनी पुस्तक में कर चुके होंगे। वह व्यक्ति इसे अपनी मान की हानि मानेगा और हाय-तौबा करता फिरेगा। 
     इसके बाद भले ही आपको अपनी पुस्तक से वह अंश हटवाना पड़े लेकिन तब तक आपकी पुस्तक धांसू पुस्तकों की पंक्ति में स्थान पा चुकी होगी और आप एक प्रतिष्ठित महान धांसू साहित्यकार बन चुके होंगे।

                                   क्रमशः ............
 

15 टिप्‍पणियां:

  1. इस बार तो मन ही बदल गया है, धांसू लेख लिखने का विचार मन में आ गया है,
    आपकी सारी बात मान के एक बात तो पक्की है कि मशहूर होने से कोई नहीं रोक सकता है,

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  2. हम तो सारे नुस्खे रट लेंगे, घोलकर पी जाएंगे।

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  3. हा हा ..सही है ..जहाँ विवाद वहीं से शुरू हो जाता है धाँसू कार्यक्रम

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  4. सही है। जब तक भोला पाठक रहेगा, धांसू साहित्य का सितारा बुलन्दी पर रहेगा।

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  5. चोट करती बात और असाधारण नुस्खे - बहुत खूब डा० शरद.

    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  6. बहुत धांसू आईडिया हैं , कहानी लिख रही हूँ आजकल , सोच रही हूँ खिंच खांच कर उपन्यास ही लिख दूं , आपके आईडिया बहुत काम आयेंगे ...
    शानदार व्यंग्य !

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  7. नायब नुस्खे. हम लोगो तक अमूल्य सामिग्री साँझा करने के लिए. इस शृंखला में जब तक सारा ज्ञान बाँट ना दे चालू रखियेगा. धन्यवाद.

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  8. धाँसू साहित्य लिखने वाले नुस्खा नंबर एक समुचित प्रयोग करते है .हम नहीं कर पाए ऐसा इसलिए तो पढ़ रहे है की आगे कुछ लायक बन जाए , आभार आपका इस मार्गदर्शन के लिए . हा हा शानदार व्यंग .ख़ुशी सरदार या डे मैडम वाला असरदार नुस्खा .

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  9. इससे बुद्धि के द्वार न केवल खुल जाएंगे, बल्कि लम्बे समय तक खुले ही रहेंगे और बंद करने का प्रयास करने पर भी बंद नहीं होंगे। विचारणीय है कि जब बुद्धि के द्वार ....

    बहुत बढ़िया आलेख है ...!!
    उम्दा व्यंग ..!!

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  10. गंभीर व्यंग्य कटाक्ष....

    यही तो वस्तुस्थिति है...क्या कहा जाय..

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  11. जो बुद्धि के खोल दे,सांकल कुंडे द्वार ,
    उसको ही अब मानिए धांसू साहित्य आधार .

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  12. बहुत बढ़िया व्यंग्य! आगे का इंतजार है,

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  13. इससे बुद्धि के द्वार न केवल खुल जाएंगे, बल्कि लम्बे समय तक खुले ही रहेंगे और बंद करने का प्रयास करने पर भी बंद नहीं होंगे।


    -हा हा!!! उल्टी तरफ से नुस्खा पढ़ते आ रहा हूं...फ्रेम करा कर टांगने में व्यस्त हो गया था. :)

    गज़ब कर डाला!!!

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