Dr (Miss) Sharad Singh, Author |
उस समय इस्मत आपा की यह कहानी न तो समाज के ठेकेदारों को और तथाकथित बुद्धिजीवियों को सहन हुई। इसे उनका दुस्साहस माना गया । इस्मत पर अश्लीलता को लेकर इलजाम लगाए गए और उन पर मुक़द्दमा चलाया गया .....
21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मीं इस्मत चुग़तई इस्मत आपा के नाम से मशहूर हुईं। वे एक ऐसी उर्दू लेखिका थीं जिन्होंने भारतीय मुस्लिम समाज में स्त्रियों के उस पक्ष को उजागर किया जो तब तक गोपन में रहा था। इसे इस्मत आपा का दुस्साहस माना गया। वे मानती थीं कि एक स्त्री सिर्फ़ स्त्री होती है, वह न हिन्दू होती है और न मुसलमान। हर स्त्री भावनाओं के स्तर पर दमित जीवन जीती है। इस्मत आपा का निधन 24 अक्टूबर 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुंबई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।
इस्मत चुग़तई को ‘उर्दू अफसाने की फर्स्ट लेडी’ भी कहा गया। उन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान मिले जिनमें प्रमुख हैं - गालिब अवार्ड, साहित्य अकादमी पुरस्कार, इक़बाल सम्मान, मखदूम अवार्ड और नेहरू अवार्ड।
उनकी पहली कहानी ‘गेंदा’ जिसका प्रकाशन 1949 में उस दौर की उर्दू साहित्य की सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका ‘साक़ी’ में हुआ और पहला उपन्यास ‘ज़िद्दी’ 1941 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म ‘छेड़-छाड़’ 1943 में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म ‘गर्म हवा’ 1973 को कई पुरस्कार मिले। उन्होंने आज से करीब 70 साल पहले पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों के मुद्दों को स्त्रियों के नजरिए से कहीं चुटीले और कहीं संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम उठाया। उनके अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है। ऐसा माना जाता है कि ‘टेढी लकीरे’ उपन्यास में उन्होंने अपने ही जीवन को मुख्य प्लाट बनाकर एक स्त्री के जीवन में आने वाली समस्याओं और स्त्री के नजरिए से समाज को पेश किया है।
21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मीं इस्मत चुग़तई इस्मत आपा के नाम से मशहूर हुईं। वे एक ऐसी उर्दू लेखिका थीं जिन्होंने भारतीय मुस्लिम समाज में स्त्रियों के उस पक्ष को उजागर किया जो तब तक गोपन में रहा था। इसे इस्मत आपा का दुस्साहस माना गया। वे मानती थीं कि एक स्त्री सिर्फ़ स्त्री होती है, वह न हिन्दू होती है और न मुसलमान। हर स्त्री भावनाओं के स्तर पर दमित जीवन जीती है। इस्मत आपा का निधन 24 अक्टूबर 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुंबई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।
इस्मत चुग़तई को ‘उर्दू अफसाने की फर्स्ट लेडी’ भी कहा गया। उन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान मिले जिनमें प्रमुख हैं - गालिब अवार्ड, साहित्य अकादमी पुरस्कार, इक़बाल सम्मान, मखदूम अवार्ड और नेहरू अवार्ड।
Ismat Chughtai |
वे अपनी ‘लिहाफ’ कहानी के कारण खासी मशहूर हुईं। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस समय इस्मत आपा की यह कहानी न तो समाज के ठेकेदारों को और तथाकथित बुद्धिजीवियों को सहन हुई। इसे उनका दुस्साहस माना गया । इस्मत पर अश्लीलता को लेकर इलजाम लगाए गए और उन पर मुक़द्दमा चलाया गया । स्त्रियों की दमित भावनाओं और गोपन इच्छाओं को सामने रखते हुए गोया समाज को समझाया कि स्त्रियां भी इंसान हैं और उनके भीतर भी वे सारी इच्छाएं होती हैं जो पुरुष प्रधान समाज ने उनके लिए खारिज़ कर रखी हैं। वे भी अपनी ज़िन्दगी जीना चाहती हैं घुट कर नहीं अपितु हंस कर। सन् 1942 में जब उनकी कहानी ‘लिहाफ’ प्रकाशित हुई तो मानो साहित्य जगत बौखला उठा। इस्मता आपा की लेखनी और उनकी दृष्टि पर अनेक अशोभनीय सवाल उठाए गए। ‘लिहाफ’ को लेस्बियन विषय की पहली भारतीय कहानी माना जाता है। वह समय देश की राजनीतिक परतंत्रता का तो था ही, उस पर सदियों की मानसिक गुलामी का भी था जिसमें औरतों बच्चे पैदा करने और घर चलाने की मशीन समझा जाने लगा था। महिलाओं को उनकी इस दशा से उबारने के लिए अनेक समाजसेवी अपने-अपने स्तर पर आंदोलन चला रहे थे लेकिन सारे आंदोलन महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक अधिकारों पर केन्द्रित थे। बहुपत्नी परंपरा की शिकार महिलाओं की दमित इच्छाओं को रेखांकित करने का साहस किसी में नहीं था। ऐसे विकट समय में इस्मत चुगतई ने ‘लिहाफ’ कहानी लिख कर उस पर्दे को हटा दिया जिसने भावनाओं के नासूर को छिपा रखा था। उनकी कहानी लिहाफ़ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में उनपर मुक़दमा चला। जो बाद में ख़ारिज हो गया।
दीपा मेहता की फिल्म ‘फायर’ से दशकों पहले इस्मत चुग़तई ने इस बात का खुलासा कर दिया था कि एक नितान्त घरेलू विवाहित महिला यदि लेस्बिएनिज़्म की ओर कदम बढ़ाती है तो उसके पीछे उसकी कौन-सी भावनात्मक विवशता रहती है। उनका आग्रह था कि ऐसी महिलाओं की ओर उंगली उठाने से पहले उनकी विवशताओं को दूर करने के बारे में सोचा जाना चाहिए। ‘लिहाफ’ के जरिए इस्मत आपा ने ध्यानाकर्षित किया कि दमित इच्छाएं इंसान से सही-गलत कुछ भी करा सकती हैं।
आज भी संकुचित विचारों वाले व्यक्ति इस्मत आपा के लेखन को सतही दृष्टि से देख कर रह जाते हैं। दरअसल, इस्मत चुगतई की कहानियों को पढ़ने के लिए चाहिए खुला दिल.दिमाग़।
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