समकालीन कथा यात्रा - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह Journey Of Contemporary Hindi Story By Dr (Miss) SHARAD SINGH
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शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011
गुरुवार, फ़रवरी 10, 2011
पुस्तक समीक्षा
‘समीक्षा’ अक्टूबर-दिसम्बर 2010 |
समीक्षक- डॉ. शरद सिंह
राज्यसत्ता और संस्कृति के अंतर्सम्बंधों पर सहज ही सबका ध्यान केन्द्रित रहता है किन्तु रचना, प्रकाशन और समीक्षा के अंतर्सम्बंध पर दृष्टिपात करने का अवसर कम ही आता है। या तो रचना और प्रकाशन या फिर रचना और समीक्षा के पारस्परिक संबंधों पर ही विचार-विमर्श सिमट कर रह जाता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि समीक्षा विधा रचनाकार की रचना प्रक्रिया को दिशा प्रदान करती है। इस विधा पर प्रायः भेद-भाव या प्रयोजित होने का आरोप भी लगता रहा है। ऐसी स्थिति में एक ऐसी पत्रिका का महत्व बढ़ जाता है जो समीक्षा विधा पर ही केन्द्रित हो। ‘आलोचना’ और ‘समीक्षा’ पत्रिकाएं मूल रूप से समीक्षा पर केन्द्रित पत्रिकाएं हैं। ‘समीक्षा’ की प्रकाशन-यात्रा सन् 1967 में पटना से आरम्भ हुई और दिल्ली स्थानान्तरित होने के बाद भी सतत् जारी रही। इस पत्रिका की यात्रा में एक सुनहरा मोड़ तब आया जब यह सामयिक प्रकाशन, दिल्ली के प्रबंधन से जुड़ गई। यह जुड़ाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि जुड़ाव के बाद निकले पहले अंक से ही ‘समीक्षा’ के रूप-रंग में परिवर्तन आने लगा। इसका श्रेय सामयिक प्रकाशन के आधारस्तम्भ और युवा प्रबंधक महेश भारद्वाज की समसामयिक दृष्टिकोण को दिया जाना चाहिए। दूसरा पक्ष यह भी है कि इसके युवा संपादक सत्यकाम और महेश भारद्वाज के बीच प्रकाशकीय समझ का एक अच्छा तालमेल है जिसका प्रमाण ‘समीक्षा’ के वे अंक हैं जो निरंतर चित्ताकर्षक एवं संग्रहणीय रूप में सामने आते गए।......शेषांश ‘पुस्तक समीक्षा’ के पन्ने पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ...