मंगलवार, जनवरी 19, 2021

दैनिक जागरण, नईदुनिया के सप्तरंग परिशिष्ट में मेरे उपन्यास ‘‘शिखण्डी’’ की वरिष्ठ समीक्षक राजेन्द्र राव जी द्वारा की गई समीक्षा - डाॅ शरद सिंह

Shikhandi, Novel of Dr Sharad Singh - Review in Dainik Jagran, Saptrang, Punarnava, 18.01.2021 by Rajendra Rao
Shikhandi, Novel of Dr Sharad Singh - Review in Jagaran, Naidunia, Satrang Punarnava, 18.01.2021 by Rajendra Rao

 दिनांक 18.01.2021 को दैनिक जागरण, नईदुनिया के सप्तरंग परिशिष्ट में मेरे उपन्यास ‘‘शिखण्डी’’ की वरिष्ठ समीक्षक राजेन्द्र राव जी द्वारा की गई समीक्षा प्रकाशित हुई है। 

https://epaper.naidunia.com/mepaper/18-jan-2021-74-indore-edition-indore-page-10.html

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ब्लाॅग पाठकों की पठन-सुविधा हेतु प्रकाशित समीक्षा लेख जस का तस मैं यहां टेक्स्ट रूप में प्रस्तुत कर रही हूं- 

"डाॅ. शरद सिंह हिंदी के उन विरल कथाकारों में हैं, जो लेखन पूर्व शोध में संलग्न होते हैं। यह कृति विरल कथासागर महाभारत से एक अनोखे चरित्र के जीवन और संघर्ष को पर्त-दर-पर्त उद्घाटित करती है, एमदम नए नज़रिए और नए अंदाज़ से।

काशी नरेश की ज्येष्ठ पुत्री अंबा और उसकी दो बहनों का अपहरण भीष्म द्वारा बलपूर्वक किए जाने के और कुरु वंश के राजकुमारों से विवाह किए जाने को सहन न करने और प्रतिकार करने के बाद वह निस्संग और निरुपाय हो कर भी अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा करती है और इसके लिए उसे किस तरह तीन जन्म और स्त्री-पुरुष दोनों के चोले धारण करने पड़ते हैं, इसका उद्देश्यपूर्ण और रोचक चित्रण इस उपन्यास में हुआ है। अंत होते-होते इसका वैचारिक पक्ष सघन स्त्रीविमर्श के रूप में सामने आता है जो पाठक को सहज ही स्वीकार्य हो सकता है। यूं तो शिखंडी की कथा युग-युग से सुनी जाती रही है परंतु इसे मानवीय और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कहा जाना एक अभिनव प्रयोग है।"

- राजेन्द्र राव

दैनिक जागरण (सप्तरंग), नईदुनिया (सतरंग) साहित्यिक पुनर्नवा, 18.01.2021

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हार्दिक धन्यवाद आदरणीय राजेन्द्र राव जी 🌹🙏🌹

हार्दिक धन्यवाद नईदुनिया 🌹🙏🌹

Shikhandi Novel of Dr (Miss) Sharad Singh


8 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🌹🙏🌹

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  2. संक्षिप्त एवं सारगर्भित समीक्षा।
    बधाई हो आपको।

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  3. शदर जी, नमस्कार
    पौराणिक और एतिहासिक चरित्रों से जुड़ी गुत्थियों को स्व विवेक और कल्पना शक्ति के सहारे सुलझाने की कोशिश है श‍िखण्डी

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    1. निःसंदेह अलकनंदा जी !
      हमारे आदिग्रंथों में अनेक पात्र ऐसे हैं जिध पर पुनर्दृष्टि आवश्यक है। इसी दिशा में मेरा यह उपन्यास है कि शिखण्डी मिथ्या मिथकों से बाहर निकल सके।
      टिप्पणी के लिए आभार 🙏🌹🙏

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