सोमवार, अप्रैल 09, 2012

मेजबान (लघुकथा)

–खलील जिब्रान

'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा

'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।

6 टिप्‍पणियां:

  1. हर एक के लिये घर का अर्थ भिन्न जो होता है।

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  3. गहरा सन्देश इस लघु कथा के माध्यम से.

    बधाई.

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  4. चलिये समय के साथ
    भेड़ समझदार होती
    जा रही है
    उसे अक्ल आ रही है ।

    वाह !!!

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  5. भेंड इतनी समझदार होतीं हैं क्या...होतीं तो लुभावने वादों में फंसतीं क्या...

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